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कटनी

परंपरागत खेती के बीच गन्ने की खेती ने दिलाई पहचान

आत्मनिर्भर भारत अभियान में गुड़ बनाने की इकाई लगाने के लिए मिलेगी आर्थिक सहायता, परंपरागत खेती के बीच नए प्रयोग की सराहना.

कटनीOct 26, 2020 / 09:18 am

raghavendra chaturvedi

officers of the Department of Agriculture among the sugarcane fields

गन्ने की खेत के बीच किसान और कृषि विभाग के अधिकारी.

कटनी. फसलों के योजनाबद्ध नियंत्रण की दिशा में कटनी जिले के ढीमरखेड़ा विकासखंड के तीन गांव के सात किसानों की पहल अब कारगर साबित हो रही है। परंपरागत खेती में धान और गेहूं की खेती के बीच कुछ खेतों में किसानों ने गन्ने की खेती की और प्रयोग सफल रहा। किसानों को सलाना 50 से 60 हजार रूपये तक अतिरिक्त आर्थिक लाभ हुआ। अब आत्मनिर्भर भारत अभियान में खेती से जुड़ी इकाई स्थापना के लिए एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड योजना में इन किसानों को कृषि उद्यमी बनाने की तैयारी चल रही है।

सिलौड़ी, अंतरसूमा और कछारगांव के किसान कमलेश हल्दकार ने 12 हेक्टेयर, रावेंद्र ने 16, रामनरेश ने 12, प्रदीप ने 10, आशीष 10, कंठीलाल 8 और उमेश ने 10 हेक्टेयर में गन्ने की खेती की है।

कृषि विभाग के उपसंचालक एके राठौर बताते हैं कि किसानों का नया प्रयोग दूसरे किसानों को प्रेरित कर रहा है। तीन साल में गन्ने की खेती का रकबा बढ़कर पांच सौ एकड़ पहुंच गया है। अब आत्मनिर्भर भारत अभियान में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड योजना के तहत किसानों को आधुनिक कृशि उत्पादन इकाई और गुड़ बनाने के संसाधन उपलब्ध कराने के प्रयास होंगे।


नए प्रयोग में फायदे की कहानी, किसानों की जुबानी
किसान कमलेश हल्दकार बताते हैं कि गन्ने की खेती करने वाले किसानों ने पिराई की देशी मशीन लगाई है। रस को उबालकर गुड़ बनाने के प्लान्ट में रस की सफाई के लिये किसी केमिकल या वस्तु का प्रयोग नहीं किया जाता। एक एकड़ के गन्ने से एक साल में 30- 35 क्विंटल गुड़ तैयार होता है। जिसे कटनी, सिलौंड़ी, पानउमरिया के स्थानीय व्यापारी 25 सौ से 3 हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीद लेते हैं।

सिलौड़ी के गन्ना किसान रामनरेश बताते हैं कि एक एकड़ में 50 से 60 हजार रुपये का मुनाफा दे जाती है। धान और गेहूं की खेती से गन्ने की फसल में कम मेहनत लगती है। जनवरी माह में एक बार फसल की बुवाई के बाद मई माह तक ग्रीष्म काल में 5 से 6 बार सिंचाई करनी होती है। इसके बाद गन्ने की फसल तीन साल तक सिंचाई के अलावा बिना कुछ किये आमदनी देती है।

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