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नवाचार: किसान न जलाएं नरवाई, हैप्पी सीडर पद्धति से कमाएं गजब का मुनाफा

आधे से भी कम लागत में बगैर जुताई कराई जा रही मूंग की खेती, पराली व नरवाई की बनवाई जा रही खाद, अंतराष्ट्रीय संस्था व कृषि विज्ञान केंद्र की पहलजिले के 250 एकड़ से अधिक रकबे में हो रही खेती, किसानों को किया जा रहा जागरुक

कटनीApr 11, 2024 / 11:18 am

balmeek pandey

नवाचार: किसान न जलाएं नरवाई, हैप्पी सीडर पद्धति से कमाएं मुनाफा

नवाचार: किसान न जलाएं नरवाई, हैप्पी सीडर पद्धति से कमाएं मुनाफा

कटनी. इन दिनों जिले में यह घटनाएं सामने आ रही हैं कि लोग गेहंू की हार्वेस्टर से कटाई के बाद अगली फसल की बोवनी के लिए नरवाई को जला दिया जा रहा है। किसानों को शायद यह नहीं पता कि फायदे कि जगह वे भयंकर घाटे का काम कर रहे हैं। इससे न सिर्फ जमीन खराब हो रही है बल्कि लाखों जीव-जंतु खत्म हो रहे हैं, जो खुद के लिए नुकसान देह हैं। किसान पराली व नरवाई को न जलाएं, इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा एक खास पहल की जा रही है। पायलट प्रोजेक्ट की तर्ज पर हैप्पी सीडर पद्धति से गेहूं की कटाई के बाद मूंग की खेती कराई जा रही है। यह खेती न सिर्फ आधे से भी कम लागत में हो रही है बल्कि बगैर नुकसान के मुनाफा दे रही है व आगजनी को रोक रही है। इस पद्धति को जिले के हर किसान को अपनाना होगा। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा ट्रैक्टर में हैप्पी सीडर मशीन लगाकर बोवनी कराई जा रही है। सीधे खेत में गेहूं की पराली को बरीक कराया जा रहा है मल्चिंग का काम कर देती है। पीछे से बुवाई का काम कर रही है। बिना जुताई के खेत में बोवनी हो जा रही है। एक एकड़ की बोवनी में किसानों को 16 से 17 किलोग्राम मूंग की का उपयोग करते हैं, लेकिन इस पद्धति में आधे बीज में हो रही है।

किसानों को पांच बड़े फायदे
इस पद्धति को अपनाने से जुताई का खर्च एक भी नहीं लगता, जबकि जुताई कराने में दो बार खेत जुताई कराने में 16 सौ रुपए जुताई लग जाती है, बोवनी के लिए 16 किलोग्राम मूंग एक एकड़ में बोई जाती है, लगभग 3200 रुपए का बीज बोता है, लेकिन इस पद्धति में 1500 से 1600 रुपए में काम हो जाता है। इस विधि से मात्र 8 किलोग्राम बीज ही लगता व 15 से 20 किलो फर्टीलाइजर का उपयोग होता है। एक घंटे में एक एकड़ में बावनी हो जाती है। बोवनी में 800 रुपए का ही अतिरिक्त खर्च आ रहा है। उत्पादान भी ज्यादा आता है। पराली जलाने के बाद 6 से 7 क्विंटल मूंग का उत्पादन होता है, जबकि हैप्पी सीडर पद्धति से 8 से 9 क्विंटल पैदावार बताई जा रही है। वैसे 8 से 10 सिंचाई करनी होती है, लेकिन इस विधि में 5 से 6 पानी में पक जाती है। गेहूं की पराली मिट्टी में मिल जाएगी और खाद का रूप ले लेगी, जिससे धान की खेती के लिए बड़ी फायदेमंद साबित होगी।

150 एकड़ में हुई बोवनी
अंतर्राष्ट्रीय संस्था बोरलॉक इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ ईस्ट एशिया (बीसा) व कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से जिले में 250 एकड़ का रकबा चिन्हित किया गया है। इस योजना के लिए ढीमरखेड़ा के सिलौड़ी, पानउमरिया, करौंदी, परसेल, बहोरीबंद के सुनाई, पहरुआ सहित अन्य गांव शामिल किए गए हैं। इसी तरह कैमोरी, लिगरी, बंडा, कन्हवारा, भैंसवाही आदि को चयनित किया गया। डेढ़ सौ एकड़ में बोनी हो चुकी है, मौसम खराब होने के कारण बोवनी रोकी गई है। जिले में पहली बार यह प्रयोग हो रहा है, जिससे किसानों को बड़ा फायदा होगा। इसके लिए दो मशीनें केंद्रीय विद्यालय के पास हैं। ट्रैक्टर, चालक बीसा की तरफ से मुहैया कराए गए हैं।

यह टीम कर रही पहल
किसानों को पराली जलाने से राकने, उनके फायदों के बारे में एक टीम काम कर रही है। इसमें जबलपुर से वैज्ञानिक महेश मसके, इंजीनियर मनोज जाट, डॉ. रवि गोपाल, सीनियर साइंटिस्ट व प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र पिपरौंध डॉ. संजय बैसमपाइन, कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार चंद्रवंशी सहित कृषि विभाग द्वारा यह पहल की जा रही है। किसानों को इस पद्धति के विशेष फायदे बताए जा रहे हैं।

पराली जलाने से हैं भयंकर नुकसान
खेतों में पराली, कचरा, डंठल जलाने से भयंकर नुकसान हैं। कृषि वैज्ञानिक के अनुसार पराली जलाने से किसानों को नुकसान तो है ही साथ ही जीवाणुओं, जीव-जंतुओं की मौत हो जाती हैं, जो फसल को तैयार होने में सहायक होते हैं। इससे लाभकारी जीवाणु जल जाते हैं, मिट्टी पत्थरीली होने लगती है, उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है, जलधारण शक्ति क्षीण हो रही है, कार्बन की मात्रा खत्म हो रही है। पराली जलाने से देखा गया है कि कई किसानों की खेतों में खड़ी फसल जल जा रही है व घर-मकान भी खाक हो जा रहे हैं।

वर्जन
पराली जलाने के कारण होने वाले भयंकर परिणाम की रोकथाम, किसानों को अधिक फायदे के लिए जिले में इस साल हैप्पी सीडर पद्धति से मूंग की खेती कराई जा रही है। आधे से भी कम लागत में यह खेती हो रही है। साथ ही किसानों को जागरुक किया जा रहा है, ताकि वे पराली व नरवाई न जलाएं। ढाई सौ एकड़ का लक्ष्य तय किया गया है, किसान इसे और भी बढ़ा सकते हैं।
डॉ. संजय बैसमपाइन, सीनियर साइंटिस्ट व प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र।

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