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बाघिन का संघर्ष ऐसा कि मुश्किल में इंसान भी लेते हैं सीख

इंटरनेशनल टाइगर डे: पांच माह की उम्र में माँ चल बसी, इंसानों ने सिखाया जंगल का कानून, जीवन में चुनौतियों का किया सामना, बनी मिसाल

कटनीJul 29, 2018 / 01:11 pm

raghavendra chaturvedi

The struggle of tigress is such that even human beings learn difficult

बाघिन का संघर्ष ऐसा कि मुश्किल में इंसान भी लेते हैं सीख

राघवेंद्र चतुर्वेदी कटनी. पांच माह की ही थी, जब माँ चल बसी। 5 अगस्त 2014 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हमेशा चर्चाओं में रहने वाली बाघिन कनकटी ने अपने तीन शावकों के भोजन के लिए चीतल का शिकार किया। शावक चीतल का भोजन ले ही रहे थे कि तभी दूसरे बाघ ने इस पूरे परिवार पर हमला कर दिया। कुनबे पर बाघ का हमला देख कनकटी बाघिन ने बच्चों की जान बचाने पूरी कोशिश की। बाघिन सीधे उस बाघ पर ही टूट पड़ी जो उसके बच्चों का जान लेने पर अमादा था। कनकटी बाघिन ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों की रक्षा के लिए लगातार बाघ से संघर्ष करती रही। फिर भी बाघ तो बाघ ही है। कनकटी बाघिन और बाघ के बीच चार घंटे से ज्यादा समय तक संघर्ष चला। इस बीच जैसे बाघ को मौका मिलता व शावकों पर टूट पड़ता। बाघ के हमले से दो शावकों की मौत हो गई और बच्चों की जान बचाते-बचाते कनकटी बाघिन ने भी दम तोड़ दिया। शाम से शुरु हुई लड़ाई रात तक चली।

अगले दिन पार्क प्रबंधन के कर्मचारी चरणगंगा नदी के किनारे पहुंचे तो उन्हे कनकटी बाघिन और दो शावकों का शव मिला। पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों को चिंता सताने लगी कि आखिर तीसरा शावक कहां गया। कहीं रात में हुई भारी बारिश में बह तो नहीं गया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन के कर्मचारी जंगल में तीसरे शावक को ढूंढऩे लगे। हाथियों की मदद ली गई। दो घंटे बाद झाडिय़ों के अंदर तीसरा शावक दिख गया। अब चुनौती थी इस मादा शावक के पालन पोषण की।
7 अगस्त 2017 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मगधी रेंज के बहेरहा इंक्लोजर (पार्क प्रबंधन द्वारा बनवाया गया बड़ा जहां बिन माँ व उत्पाती बाघों को निगरानी के लिए रखा जाता है) के 0.26 हेक्टेयर के कक्ष क्रमांक 4 पर इस पांच माह की मादा शावक को छोड़ दिया गया। नाम दिया गया टी-11।

1 मई 2014 को ली गई फोटो में कनकटी बाघिन और उसके तीन बच्चे हैं। इन्ही में से एक है आज की टी-11 IMAGE CREDIT: Raghavendra बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के तत्कॉलीन फील्ड डायरेक्टर सीएच मुरलीकृष्ण बताते हैं कि बिना माँ की बच्ची को पालना आसान नहीं था। उसका पालन पोषण ऐसे ही करना था, जैसे एक बाघिन माँ अपने बच्चे का पालन पोषण करती है। इसके लिए ट्रैप कैमरे से ऐसी बाघिन का वीडियो बनाया जो जंगल में अपने बच्चों को पालती है। उसी अंदाज में टी-11 का पालन पोषण शुरु किया गया। तीन शिफ्ट में कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई। जो बाघिन पर हमेशा नजर रखते। पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों ने इस मादा शावक का पालन पोषण बाघिन माँ की तरह ही किया। दूध पिलाने से लेकर भोजन में मांस शामिल करना और स्वयं शिकार का गुर सिखाना । जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई। टी-11 को पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों ने वो हर बात सिखाई जो उसे खुले जंगल में जाने के दौरान काम आती।
भोजन के लिए छोड़ा बकरा तो बन गया दोस्त
टी-11 को शिकार का गुर सिखाने के लिए 15 दिसंबर 2015 को बाड़े में बकरा छोड़ा गया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के तत्कॉलीन मगधी एसडीओ आरपी मिश्रा बताते हैं कि पहली बार जब इंक्लोजर में बकरा छोड़ा गया तो उसका शिकार करने के बजाये टी-11 ने उसे दोस्त बना लिया। उसके साथ बाड़े में विचरण करने लगी। पूरे दिन उसका शिकार नहीं किया। पार्क प्रबंधन के कर्मचारी परेशान थे कि बाघिन शिकार करना नहीं सीखेगी तो काम कैसे चलेगा। फिर अलगी सुबह देखे तो बाघिन ने बकरे का शिकार कर लिया था और भूख मिटा रही थी।
संघर्ष ऐसा कि इंसानों ने ली सीख
बकरा के बाद छोटे भैंसा फिर चीतल। बाड़े में वो सभी वन्यप्राणी छोड़े गए जिसका शिकार खुले जंगल में बाघिन करती। चीतल छोड़कर बाघिन को सिखाया गया कि खुले जंगल में चीतल का शिकार किये जाने के दौरान उसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। दो साल की कड़ी मशक्कत के बाद पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों ने बाघिन को वो हर बात सिखा ली जो खुले जंगल में जाने के बाद उसके काम आती। पार्क प्रबंधन के कर्मचारी बताते हैं कि पांच माह से युवा बाघिन होने के दौरान टी-11 का जीवन जीने के प्रति संघर्ष से इंसान भी सीख लेते दिखे। पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों को जब निजी जीवन में परेशानी आती तो वे भी टी-11 को याद कर लेते। एक कर्मचारी ने बताया कि टी-11 ने कष्ट और चुनौतियों के बीच हार नही मानी, तो काम के दौरान कई कर्मचारी आपस में चर्चा के दौरान उसका उदाहरण देते हैं।
11 मार्च 2016 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बहेरहा इंक्लोजर से टी-11 को संजय टाइगर रिजर्व के दिए विदा किया गया। उद्देश्य था संजय टाइगर रिजर्व में बाघ कम है, वहां बाघिन को रहने में ज्यादा चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। यहां से ले जाकर पहले संजय टाइगर रिजर्व के कंजरा इंक्लोजर में रखा गया। वहां कुछ माह रखने के बाद 2 मई 2017 को खुले जंगल में छोड़ दिया गया। संजय टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर विसेंट रहीम बताते हैं कि खुले जंगल में टी-11 को छोड़े जाने के बाद कड़ी निगरानी रखी गई।
इंसानों ने जिस बाघिन को ट्रेनिंग दी हो। वह भला जंगल में जाकर जीवन की चुनौतियों का सामना कर पाती है या नहीं। इस पर पूरे प्रदेश के साथ ही देश की नजर थी। एक माह से ज्यादा समय तक चौबीसो घंटे निगरानी के बाद पार्क प्रबंधन को लगने लगा कि बाघिन पर खुले जंगल में जीवित रह सकेगी। इस बीच खुले जंगल में जाने के बाद बाघिन को जीवित रहने कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा। कई बार घायल भी हुई, लेकिन जीवन जीने की ललक ने आज बाघिन टी-11 को मिशाल के रुप में सामने ला दिया।
टी-11 संजय टाइगर रिजर्व में इन दिनों अपने तीन शावकों के साथ विचरण कर रही है। डुबरी रेंज के रेंजर वीबीएस परिहार कहते हैं कि टी-11 जंगल में उन बाघों की तरह ही व्यवहार करती है जिन बाघों को उनकी बाघिन माँ ने ट्रेनिंग दी है। यह अलग बात है कि टी-11 को जंगल का कानून इंसानों ने सिखाया है। देश में बाघ बढ़ रहे हैं तो उनके प्रबंधन और सुरक्षा में टाइगर रिजर्व में काम कर रहे प्रबंधन के कर्मचारियों के मानवीय प्रयासों से कहीं ज्यादा बाघिनों का त्याग और शावकों का जीवन जीने के प्रति ललक है।
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तस्वीर कान्हा टाइगर रिजर्व की बाघिन टी-33 की है IMAGE CREDIT: Raghavendra
कान्हा टाइगर रिजर्व की बाघिन टी-33 की तस्वीर है। टाइगर रिजर्व में महावीर बाघिन के नाम से प्रसिद्ध यह बाघिन वाकई महावीर है। डेढ़ साल पहले चार शावकों को जन्म देने वाली इसी बाघिन के एक बच्चे को 20 जून को बाघ विस्तार कार्यक्रम में उड़ीसा के सतकोशिया टाइगर रिजर्व भेज दिया गया। किसी माँ से उसका बेटा दूर हो जाए तो पीड़ा समझी जा सकती है। यहां महावीर बाघिन की खासियत यह है कि बेटे के बिछड़ जाने के बाद भी वह दुख का घूंट पी गई। अब बाकी के तीन शावकों को जंगल का कानून उसी तन्मयता के साथ सिखा रही है। टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय शुक्ला के अनुसार इस सीजन पार्क नए शावकों से गुलजार है। अक्टूबर से 14 बाघिन से 35 से ज्यादा नन्हे मेहमान के कदम इस टाइगर रिजर्व में पडऩे वाले हैं।

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