फोटो, वीडियो संजय टाइगर रिजर्व के डुबरी रेंजर वीपीएस परिहार ने पत्रिका को उपलब्ध कराई। इसमें कई तस्वीर तो उन्होंने स्वयं ही जंगल में ली है। रेंजर ने बताया कि इन दिनों बाघिन अपने शावकों जंगल में सफल रहने की सीख दे रही है।
बाघिन टी-11 पांच माह की ही थी, जब माँ चल बसी। साल 2014 अगस्त माह की पांच तारीख को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हमेशा चर्चाओं में रहने वाली बाघिन कनकटी ने अपने तीन शावकों के भोजन के लिए चीतल का शिकार किया। शावक चीतल का भोजन कर रहे थे कि तभी दूसरे बाघ ने इस पूरे परिवार पर हमला कर दिया। कुनबे पर बाघ का हमला देख कनकटी बाघिन ने बच्चों की जान बचाने पूरी कोशिश की। बाघिन सीधे उस बाघ पर ही टूट पड़ी जो उसके बच्चों का जान लेने पर अमादा था। कनकटी बाघिन ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों की रक्षा के लिए लगातार बाघ से संघर्ष करती रही। फिर भी बाघ तो बाघ ही है। कनकटी बाघिन और बाघ के बीच चार घंटे से ज्यादा समय तक संघर्ष चला। इस बीच जैसे बाघ को मौका मिलता व शावकों पर टूट पड़ता। बाघ के जानलेवा हमले से दो शावकों की मौत हो गई और बच्चों की जान बचाते-बचाते कनकटी बाघिन ने भी दम तोड़ दिया। शाम से शुरु हुई लड़ाई रात तक चली।
अगले दिन पार्क प्रबंधन के कर्मचारी चरणगंगा नदी के किनारे पहुंचे तो उन्हे कनकटी बाघिन और दो शावकों का शव मिला। पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों को चिंता सताने लगी कि आखिर तीसरा शावक कहां गया। कहीं रात में हुई भारी बारिश में बह तो नहीं गया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन के कर्मचारी जंगल में तीसरे शावक को ढूंढने लगे। हाथियों की मदद ली गई। दो घंटे बाद झाडिय़ों के अंदर तीसरा शावक दिख गया। अब चुनौती थी इस मादा शावक के पालन पोषण की।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मगधी रेंज के बहेरहा इंक्लोजर (पार्क प्रबंधन द्वारा बनवाया गया बड़ा जहां बिन माँ के शावक व उत्पाती बाघों को निगरानी के लिए रखा जाता है) के 0.26 हेक्टेयर के कक्ष क्रमांक 4 पर 7 अगस्त 2014 को पांच माह की मादा शावक को छोड़ा गया। नाम दिया गया टी-11।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के तत्कॉलीन फील्ड डायरेक्टर सीएच मुरलीकृष्ण बताते हैं कि बिना माँ की बच्ची को पालना आसान नहीं था। इस शावक का पालन पोषण ऐसे ही करना था, जैसे एक बाघिन माँ अपने बच्चे का पालन पोषण करती है। इसके लिए ट्रैप कैमरे से ऐसी बाघिन का वीडियो बनाया जो जंगल में अपने बच्चों को पालती है। उसी अंदाज में टी-11 का पालन पोषण शुरु हुआ। सतत निगरानी के लिए तीन शिफ्ट में कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई। पार्क प्रबंधन के कर्मचारियों ने इस मादा शावक का पालन पोषण बाघिन माँ की तरह ही किया। दूध पिलाने से लेकर भोजन में मांस शामिल करना और शिकार का गुर सिखाना। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, टी-11 को पार्क प्रबंधन के कर्मचारी वो हर बात सिखाते गए जो उसे खुले जंगल में जाने के दौरान बाघिन के काम आती।
भोजन के लिए छोड़ा बकरा तो बन गया दोस्त
15 दिसंबर 2015 को पहली बार बाघिन के बाड़े में बकरा छोड़ा गया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के तत्कॉलीन मगधी एसडीओ आरपी मिश्रा बताते हैं कि पहली बार जब इंक्लोजर में बकरा छोड़ा गया तो उसका शिकार करने के बजाये टी-11 ने उसे दोस्त ही बना लिया। उसके साथ बाड़े में विचरण करने लगी। पूरे दिन उसका शिकार नहीं किया। पार्क प्रबंधन के कर्मचारी परेशान थे कि बाघिन शिकार करना नहीं सीखेगी तो काम कैसे चलेगा। फिर अलगी सुबह देखे तो बाघिन ने बकरे का शिकार कर लिया था और भूख मिटा रही थी।
संघर्ष ऐसा कि इंसानों ने ली सीख
बकरा के बाद छोटे भैंसा फिर चीतल। बाड़े में वो सभी वन्यप्राणी छोड़े गए जिसका शिकार खुले जंगल में बाघिन करती। बाड़े में चीतल छोड़कर बाघिन को सिखाया गया कि खुले जंगल में चीतल का शिकार किये जाने के दौरान उसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कैसे दौड़ लगानी पड़ेगी। दो साल तक कड़ी मशक्कत कर प्रबंधन के कर्मचारियों ने बाघिन को वो हर बात सिखाई जो खुले जंगल में जाने के बाद उसके काम आती। पार्क प्रबंधन के कर्मचारी बताते हैं कि पांच माह की शैशव अवस्था से युवा बाघिन होने तक टी-11 का जीवन जीने के प्रति संघर्ष से इंसान भी सीख लेते हैं। यहां कर्मचारियों को जब निजी जीवन में परेशानी आती तो वे भी टी-11 का उदाहरण देते हैं।
11 मार्च 2016 को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बहेरहा इंक्लोजर से टी-11 को संजय टाइगर रिजर्व के दिए विदा किया गया। उद्देश्य था संजय टाइगर रिजर्व में बाघ कम है, वहां बाघिन को रहने में ज्यादा चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। बांधवगढ़ से शिफ्टिंग ऑपरेशन के बाद टी-11 को पहले संजय टाइगर रिजर्व के कंजरा इंक्लोजर में रखा गया। वहां कुछ माह रखने और वहां के जंगल के अनुरुप व्यवहार का अध्ययन करने बाद 18 अक्टूबर 2016 को खुले जंगल में छोड़ा गया। संजय टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर विसेंट रहीम बताते हैं कि खुले जंगल में टी-11 को छोड़े जाने के बाद कड़ी निगरानी रखी गई।
पूरे देश की थी नजर
इंसानों ने जिस बाघिन को ट्रेनिंग दी हो। वह भला जंगल में जाकर जीवन की चुनौतियों का सामना कर पाती है या नहीं। इस पर प्रदेश के साथ ही देश की नजर थी। एक माह से ज्यादा समय तक चौबीसो घंटे निगरानी के बाद पार्क प्रबंधन को लगने लगा कि बाघिन अब खुले जंगल में जीवित रह सकेगी। यह बात जरुर है कि बाघिन को जीवित रहने के लिए जंगल में कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा। भोजन के लिए शिकार के दौरान कई बार घायल भी हुई, लेकिन जीवन जीने की ललक ने आज बाघिन टी-11 को मिसाल बना दिया।
बाघिन टी-11 संजय टाइगर रिजर्व में इन दिनों अपने तीन शावकों के साथ विचरण कर रही है। डुबरी रेंजर वीबीएस परिहार बताते हैं कि टी-11 जंगल में उन बाघों की तरह ही व्यवहार करती है जिन बाघों को उनकी बाघिन माँ ने ट्रेनिंग दी है। ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि बाघिन को इंसानों से बचपन से पाल पोषकर बड़ा किया हो।
देश में बाघ बढ़ रहे हैं तो प्रबंधन और सुरक्षा में टाइगर रिजर्व में काम कर रहे प्रबंधन के कर्मचारियों के प्रयासों से कहीं ज्यादा शावकों का जीवन जीने के प्रति ललक है, तो है बाघिन माँ का त्याग और संघर्ष…