तर्पण, श्राद्ध तिथि वार करने का विधान है। भादो शुक्लपक्ष की पूर्णिमा श्राद्ध पर्व के साथ शुरू होता है। अश्विन कृष्णपक्ष में पितृमोक्ष अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध पर्व मनाया जाता है। लोग अपने पितरों का तर्पण, पिंडदान करने के लिए प्रयागराज और गया धाम के लिए जाते हैं। साथ ही राजिम और मंडला के त्रिवेणी संगम भी जाते हैं। नदी, तालाबों में डुबकी लगाकर पितरों का तर्पण, पिंडदान कर श्रद्धा अर्पित किया जा रहा है। परिजनों और पूर्वजों की मृत तिथि के अनुसार लोग श्रद्धाभाव और आत्मशांति के लिए प्रार्थना करेंगे। इस साल नवरात्र से एक दिन पहले 28 सितंबर को पितृ मोक्ष अमावस्या है। यह 20 साल बाद पितृ मोक्ष अमावस्या शनिवार के दिन रहेगी। इस दिन पितरों का श्राद्ध करना शुभ माना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान 16 दिनों तक हमारे पूर्वज स्वर्ग से धरती पर आते हैं और हमारे बीच रहते हैं। इसके बाद अमावस्या को उनकी विदाई की जाती है। अगर किसी को उनके पूर्वजों की मृत्यु तिथि न पता हो तो पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध किया जाता है। भाद्रपद की पूर्णिमा का एक दिन और अश्विन कृष्णपक्ष के 15 दिन को मिलाकर 16 दिनों का श्राद्ध होता है। पितृपक्ष की समाप्ति अमावस्या के दिन होती है। इस साल पितृमोक्ष अमावस्या शनिवार के है जिसे पंडितों द्वारा शुभ संयोग माना जा रहा है।
पितृ पक्ष अमावस्या के दिन पूर्वजों की विदाई की जाती है। इस दिन धरती से पूर्वजों की पूरे विधि विधान के साथ विदाई की जानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पितरों की विधिवत विदाई नहीं की गई तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है। इस दिन सुबह नहा-धोकर बिना लहसुन, प्याज का भोजन बनाना चाहिए। उसके बाद दोपहर के समय पहले गाय, कुत्ता, कौंआ और चीटी के लिए भोजन निकालकर फिर ब्राम्हणों को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद ब्राम्हणों को दान दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं।