मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से लगी रही। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को भी बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। नगर के सभी देवी मंदिरों में महाष्टमी के हवन-पूजन पश्चात कन्या भोज भी कराया गया। इसमें कई मंदिरों में 21 तो कहीं 27 और 51 बालिकाओं को देवी के रूप में सजाया गया। बालिकाओं को देवी मानकर उनके पैरों में माहुर रचाकर उनकी पूजा-अर्चना की कई और उन्हें भोज कराया गया। इसके साथ ही उन्हें शृंगार के सामान भी दिए गए।
शहर में खप्पर की परंपरा आज भी कायम है। अष्टमी की मध्य रात्रि को देवी स्वरूप पंडा एक हाथ में तलवार व दूसरे में हाथ में जलती हुई खप्पर लेकर नगर भ्रमण को निकले। मां दंतेश्वरी मंदिर में रात्रि १२.१० बजे अगुवान के एक हाथ में अभिमंत्रित तलवार व दूसरी व्यक्ति के एक हाथ में खप्पर व दूसरे में तलवार लेकर निकले। १० मिनट के अंतराल में मां चंडी मंदिर और फिर मां परमेश्वरी मंदिर खप्पर निकाला गया। तीन मंदिरों से निकले खप्पर को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे हुए थे, जिन्हें संभालने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी। मध्यरात्रि में शहर का माहौल मेले जैसे रहा।