कई ऐसे आश्रम व छात्रावास ऐसे भी हैं जहां खाना रसाइया नहीं वहां पर बालक या बालिकाएं ही बनाते हैं। रसोइया का कभी-कभी हाथ बटाना अलग है, लेकिन पूरी तरह से खाना ही पकाना ही बच्चों का काम नहीं है। इसके लिए शासन की आरे से रसोइया नियुक्त है, लेकिन अधिकतर आश्रम में देखा गया है कि बच्चे ही खाना पकाने में जुट रहते हैं।
अधीक्षक गायब
पंडरिया और बोड़ला के वनांचल स्थित आश्रम और छात्रावास में अधिकतर अधीक्षक दो दिनों के लिए गायब ही हो जाते हैं। शुक्रवार की शाम या शनिवार की सुबह से रवाना होते हैं जो सोमवार को ही वापस पहुंचते हैं। मतलब दो दिनों तक छात्रावास में बच्चे अपने या रसोइया के भरोसे रहते हैं। ऐसे में वहां कुछ हो जाए तो इसकी कोई जवाबदारी नहीं है।
बोड़ला विकासखंड के सिंघनपुरी में आदिवासी बालक छात्रावास अधीक्षक द्वारा मनमानी किया जा रहा है। तीन दिन पहले ही आश्रम से बच्चों को उनके घर भेजा जा रहा है। आश्रम से बच्चों को भगाने से खुद भी फ्री हो जाएंगे। इसके कारण पहले से भेजा जा रहा है, जबकि स्कूलों व आश्रमों में 17 नंवबर से दशहरा की छुट्टी होगी। इसके बाद स्कूल व आश्रम सीधे २२ नंवबर को खुलेंगे। लेकिन अधीक्षक द्वारा मनमानी करते हुए छात्रों को जबरन छुट्टी दिया जा रहा है। अधिकतर आश्रम-छात्रावास में छुट्टी नजदीक आते ही पहले से बच्चों को भगा दिया जाता है।
-आश्रम छात्रावासों का लगातार निरीक्षण किया जाता है। कई पर कार्रवाई भी किया गया है।
आशीष बनर्जी, सहायक आयुक्त, आदिम जाति विभाग कबीरधाम