तहसील कार्यालय अंतर्गत भुइंया सॉफ्टवेयर के नए अपडेट वर्जन में हो रही तकलीफ के चलते समस्त पटवारियों ने अपने डिजीटल सिग्नेचर शासन को लौटा दिए। इसके बाद मानो किसानों की समस्या ही बढ़ ही गई। इसके चलते कवर्धा और सहसपुर लोहारा तहसील के पटवारियों को ट्रेनिंग देने सोमवार को कलेक्ट्रेट में कार्यशाला आयोजित की। इसमें करीब ५० से अधिक पटवारी और दो ऑपरेटर ट्रेनर के रूप में मौजूद रहे। यहां पर भुइंया सॉफ्टवेयर में हो रही परेशानियों को दूर करके दिखाना था, लेकिन ट्रेनर भी उन समस्याओं को दूर नहीं कर सके। सुबह ११ से ५.३० बजे तक चले कार्यशाला में सही ढंग से एक नामांतरण करके नहीं दिखाया जा सका। जितने भी ऑप्शन बताते गए सभी में कोई न कोई गलती निकलती गई। इसके बाद ट्रेनर भी समस्याओं को नोट किए और रायपुर से सुधारकर फिर से ट्रेनिंग देने की बात कही।
पटवारी संघ की ओर से बताया गया कि ट्रेनिंग के दौरान पटवारियों ने सवाल किए तो टे्रनर कोई संतोषप्रद जवाब ही नहीं दे सके। कार्यशाला में प्रशिक्षण देे रहे सॉफ्टवेयर डेमो के रूप में था, जबकि पटवारी आईडी में काफी अंतर है। ट्रेनिंग के दौरान कई ऑप्शन पटवारी के आईडी में दिखाई ही नहीं दे रहे थे। इस पर ट्रेनर द्वारा बताया गया उनके आईडी में यह बाद में जोड़ा जाएगा। नए अपडेट वर्जन में पारदर्शिता दिखाई दे रही है, लेकिन इसे काफी जटिल बना दिया गया। जैसे किसानों का पंजीयन बिना मोबाइल नंबर के नहीं हो सकता। खरीफ फसल के साथ रबी फसल की भी जानकारी देनी अनिवार्य है। यह उन किसानों के परेशानी वाली है जो रबी फसल लेते ही नहीं। इस तरह से कई प्रकार के जटिलता मौजूद है।
भू-अभिलेख के प्रभारी अधिकारी व डिप्टी कलक्टर अनिल सिदार ने कलेक्टोरेट से जारी सूचना में बताया कि जिन छोटी-छोटी त्रुटियों को सुधार पाने में असमर्थता कहकर विरोध किया जा रहा है, वह छोटी त्रुटि नहीं है क्योंकि किसान के नाम में परिवर्तन से किसान को परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अब नाम परिर्वतन तहसीलदार की अनुमति के बाद ऑनलाइन किया जा सकेगा, जो कि भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुरूप ही है। इस प्रक्रिया से पारदर्शिता बढ़ेगी और यह खसरो के दुरूपयोग को रोकने का राज्य सरकार का एक प्रयास है।