यहां पर 10 एकड़ जमीन जो पहाड़ी में थी, जिसमें मिट्टी कम मुरुम ज्याद थी। इस पर 15 अगस्त 2016 में पहला अनार का पौधा लगाया और उसके बाद उसी वर्ष कुल 300 अनार के पौधों का रोपण कर डाला। धीरे-धीरे अन्य फलदायक पौधों की संख्या भी बढ़ती गई और वर्तमान में 10 एकड़ में से 4 एकड़ में पंद्रह सौ के लगभग फलदायक पौधे पेड़ में तब्दील हो चुके हैं। पेड़ों की देखरेख पति-पत्नी मिलकर करते हैं ।
4 एकड़ में यह लगाए फलदायक पौधे
दातार सिंह ने बताया कि उनकी वर्तमान में आयु 70 वर्ष है। 65 की उम्र में यहां आया था और 6 वर्षों में इस पथरीली जमीन पर अनार के 300 पौधे, जाम के 550, चीकू के 80, आम के 80, सीताफल के 50, नींबू के 20, कटहल के 12, संतरा, मौसंबी, आंवल,ा एप्पल बेर, केला, इमली, जामुन के 10-0 पौधे सुरजला के पांच और नारियल के चार पौधे के अलावा बांस के दो हजार, मोहगनी के 100 पेड़ लगाए हैं। इसके अलावा बची हुई 6 एकड़ में हम फसल लेते हैं । शुरुआत में यहां कुछ नहीं था। पानी के लिए दो ट्यूबवेल, दो कुएं और बैक वाटर से 3000 फीट पाइप डाल कर पानी लाया गया। पेड़-पौधों की हरियाली और ताजी हवा से सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं यह सुना था, लेकिन हमारी बीमारी दूर हुई है और मुझे यह पेड़ अब अपने बच्चे जैसे लगने लगे हैं। सभी को पेड़ों को बच्चों जैसे पालना चाहिए।
भोपाल और खंडवा में मन नहीं लगा तो गांव का रुख
प्रकृति प्रेमी दातार ने बताया कि वह किल्लोद के रहने वाले हैं। सर्विस के लिए भोपाल गया 2010 में जब रिटायर हुआ तो बेटों के पास खंडवा आ गया। 5 वर्ष उनके साथ रहा, लेकिन यहां पकर कोई काम नहीं होने की वजह से आलसी हो गया। इसके बाद पत्नी के साथ यहां चला आया और अब यहीं बस गया। दोनों बेटों का भी साथ मिलता है। इन पौधों को लगाने में शासन से भी मदद ली गई। जाम के पौधे नमामि देवी नर्मदा यात्रा के दौरान लगाए गए। अनार के पौधे कृषि विभाग के द्वारा दिए गए और आज यह पौधे धीरे-धीरे पेड़ों में तब्दील हो गए हैं।
बीमारी से भी मिली मुक्ति
प्रकृति के सानिध्य का असर यह हुआ कि दातार सिंह जो मधुमेह से पीडि़त थे, एक वर्ष पहले पूरी तरह मधुमेह मुक्त हो गए। दातार ने बताया कि 5 साल पहले मुझे इंसुलिन इंजेक्शन लेना पड़ता था, उसके बाद खाना खाता था और एक वर्ष पहले तक गोलियां लेता था, लेकिन एक वर्ष से कुछ नहीं ले रहा हूं। सुबह शाम इन पेड़ों की सेवा करता हूं और इनको बड़ा करने में लगा रहता हूं। ताजी हवा के कारण मेरी सारी बीमारी दूर हो गई। शुरुआत कठिनाई भरी थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी आज हरा भरा बगीचा देखकर दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और हम उनको पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करते हैं।