scriptसंस्कृति किताबों से नहीं जीवन से सीखी जाती है | Swami Vivekananda | Patrika News
खंडवा

संस्कृति किताबों से नहीं जीवन से सीखी जाती है

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष सच्चिदानंद जोशी ने अपने विचार रख

खंडवाJan 14, 2019 / 01:05 am

राहुल गंगवार

Swami Vivekananda

Swami Vivekananda

खंडवा. तीन दिवसीय स्वामी विवेकानंद व्याख्यानमाला का शुभारंभ रविवार को गौरीकुंज में हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत में बालिकाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। व्याख्यानमाला के पहले दिन भारत एक सांस्कृति राष्ट्र विषय पर नई दिल्ली से आए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष सच्चिदानंद जोशी ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा भारत एक नक्शा नहीं है। ये प्रकृति, संस्कृति, भारा की अलग-अलग कटाओं वाला राष्ट्र है। भारत को केवल ७० वर्ष पुराना कहना हमारे राष्ट्र के प्रति अन्याय होगा।
भारत तो वह स्थल है जो हजारों वर्षों पूर्व विश्वगुरु रहा है। भारत का सही इतिहास नहीं पढ़ाना, इस देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। भारत भौगोलिक, राजनीतिक इकाई नहीं, सांस्कृतिक इकाई है। भारत संस्कृतियों का विराट स्वरूप है।
भारत अपने आपमें संपूर्ण विश्व है। आगे उन्होंने कहा आज राष्ट्र के सम्मान में अदालतों के आदेश अपनना शर्म का विषय है। वर्तमान में राष्ट्रगान के समय खड़े होने के लिए आग्रह किया जाता है, बहस हो रही है और अदालत के फैसले का इंतजार किया जा रहा है। यह चिंता का विषय है। हमे पहले संस्कृति के मर्म को समझना चाहिए। संस्कृति किताबों से नहीं जीवन से सीखी जाती है।

…वहीं वसुदेव कुटुंबकम के पोषक है
व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए जोशी ने कहा जिनके चरित्र में उदारता है वे ही वसुदेव कुटुंबकम के पोषक हो सकते हैं। संस्कृति का हमारे देश के विचार में मुख्य न होना ही इस देश में अशंतता का कारण है। संस्कृति की साधना करना चाहिए। भारत में भाव प्रसाद के समान है। नि:स्वार्थ दान करना भी संस्कृति है। संस्कृति के मर्म को समझना जरूरी है। इस समय नमस्कार करना और बड़ों के पैर छूट की संस्कृति की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। जबकि चरण स्पर्श करना याने अपना अंहकार अपने वरिष्ठ के चरण में रख देना है। निस्वार्थ, निश्छल भाव से जो राष्ट्र से जुड़ा है। वहीं राष्ट्रवाद सिखा सकता है।

शिक्षा और संस्कृति अलग नहीं
उन्होंने कहा प्रकृति, विकृति और संस्कृति का अध्ययन करेंगे तो हम अपने मूल की ओर लौटने लगेंगे। संस्कृति की अवराधणा को विस्तृत रूप में समझने और समझाने की जरूरत है। वहीं शिक्षा और संस्कृति अलग नहीं है। कार्यक्रम के अंत में समागार में मौजूद लोगों ने सवाल किए। जिनके जवाब वक्ता द्वारा दिए गए। इस दौरान व्यापारी भूपेंद्र खंडपुरे, पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, प्रवीण पाराशर, मोहिनी तिरोले, डॉ. दीपेश उपाध्याय आदि मौजूद थे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो