बड़वाह में बना था एशिया का सबसे बड़ा लोह इस्पात कारखाना, ब्रिटिश काल में शुरूहुई रेल सेवा
औद्योगिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ बड़वाह, आज रोजगार की तलाश में युवा कर रहे दूसरों शहरों का रूख
लोह इस्पात की यूनिट।जो अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है
बड़वाह आज नगर के अधिकांश युवा रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर है । वर्तमान समय में अगर कहा जाए कि नगर का भी एक समृद्धशाली गौरवमयी औद्योगिक इतिहास था । तो आज के बेरोजगारी से जूझते युवा उपहास उड़ाएंगे । परन्तु यह मात्र एक किवदंती नहीं है।बड़वाह किसी जमाने में औद्योगिक क्षेत्र हुआ करता था । शहर ने उद्योग क्षेत्र में देश ही नहीं बल्कि एशिया का प्रतिनिधित्व भी किया है । यहां जनसंया से ज्यादा रोजगार उपलब्ध था । इसलिए यह स्थान अंग्रेजों के नगर की सूची में औद्योगिक नगर के नाम से अंकित था । उस दौर के उद्योग और उनमें लगने वाला कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था । जिसका अंग्रेजों द्वारा खूब बखूबी दोहन किया गया । निमाड़ और बड़वाह क्षेत्र के औद्योगिक दोहन के लिए ही रेल लाइन को खरगोन धार जैसे बड़े शहरों को छोड़ इस क्षेत्र में से होकर ले जाया गया था। यह रेल लाइन औद्योगिक क्षेत्र के दोहन के लिए ही डाली गयी थीं ।जिसका लाभ हम आज भी ले रहे हैं। जबकि मालवा ओर निमाड़ के अन्य प्रमुख शहर इससे आज भी वंचित है।
एशिया का पहला लोह इस्पात कारखाना
सन् 18 6 0 में बड़वाह के पूर्वी क्षेत्र में चोरल नदी किनारे एक विशाल लौह इस्पात कारखाना स्थापित था।जिसमें 3, 000 मजदूरों को काम पर रखे जाने का उल्लेख मिलता है । सबसे बड़ी बात यह है कि यह एशिया की पहली विशाल लोह इस्पात की पहली यूनिट थीं । 18 58 में स्वीडन के व्यापारी निल्स विलियम मिटेंडर ने लोह इस्पात की दो बड़ीी यूनिट स्थापित की थीं।एक बड़वाह में चोरल किनारे तथा दूसरी हिमालय में उत्तराखंड के कुमाऊं नगर में, जो बड़वाह के छ: माह बाद स्थापित होने से एशिया की पहली यूनिट बनी । नर्मदा, चोरल और पढाली जैसी नदियों से मिलने वाला भरपूर पानी और कच्चा लोहा की सुविधा से यह संभव हुआ।
ऐसे हुई खोज
सन् 18 55 में स्वीडिश व्यापारी ने लोह इस्पात उद्योग लगाने के लिए भारत भृमण किया और 2 साल की खोज के बाद बड़वाह में चोरल नदी किनारे (वर्तमान शासकीय विद्यालय के समीप) जमीन को सबसे उपयुक्त पाया और अंतत: नवबर 18 6 0 में पांच चिमनियों वाले विशाल भवन वाले कारखाने की स्थापना की गई।उल्लेखनीय हैकि बड़वाह भारत का एक बड़ा चुना उत्पादक क्षेत्र भी था यहां चूने की लगभग 8 4 भट्टियां थीं।जिसमें चुने का उत्पादन होता था।उस दौर में भवन निर्माण में सीमेंट के स्थान पर चुना ही उपयोग में लाया जाता था।इसलिए चुने की डिमांड बहुत थी । रेशम उत्पादन और तेंदूपत्ता से बीढ़ी निर्माण में भी बड़वाह ने विशेष पहचान बनाईथी।
आजादी के बाद लोकप्रियता में आई कमी
कालांतर में आजादी के बाद बड़वाह के स्वर्णिम युग को किसी की नजर लग गयी ओर उद्योग धंधे बंद होते गए और बड़वाह के गौरवमयी औद्योगिक इतिहास का नामोनिशान मिटता चला गया। या यू कहे तो अंग्रेजों के बाद भारतीय नेतागण खासकर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि इस और ध्यान नहीं दे पाए और बड़वाह का स्वर्णिम उद्योगिक इतिहास खत्म हो गया। कॉटन जिनिंग और आयल मिल में ही बड़वाह का नाम कुछ समय तक चला जिसके कुछ लघु उद्योग आज भी बड़वाह में मौजूद है। वर्ष पूर्व बड़वाह क्षेत्र में उद्योग के लिए जो संसाधन अंग्रेजों के दिखाई दिए वो आजादी के बाद यहां के जनप्रतिनिधियों को क्यों नही दिखाई दिए । यह आज सबसे बड़ा सवाल है।प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाए तो बड़वाह क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग स्थापित किया जा सकता है । जिससे स्थानीय युवाओं को भी ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिल सकता है
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