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खरगोन

Khargone News : आखिर कब होगा अधूरी नहरों का काम पूरा

750 करोड़ की योजना में 50 प्रतिशत काम पूरा, सूखें खेतों को देख निराशा में डूबे किसान

खरगोनMay 22, 2023 / 04:14 pm

harinath dwivedi

Micro Irrigation Project

Micro Irrigation Project

खरगोन. निमाड़ की धरती पर हर किसान के खेत तक नर्मदा का पानी पहुंचाने के उद्देश्य से माइक्रो सिंचाई परियोजना खाका तैयार किया गया है। खरगोन जिले में छोटी-बड़ी आठ उद्वहन सिंचाई योजनाएं स्वीकृत हुई है, जिन पर काम चल रहा है। निर्माण एजेंसी एनवीडीए है और काम ठेकेदार द्वारा किया जा रहा है। खरगोन उद्वहन परियोजना जिले ही नहीं मप्र की पहली ऐसी योजना है, जो सबसे पहले स्वीकृत हुई, लेकिन इसे पूरा होने का सपना आज भी किसान देख रहे हैं। सही मायने में योजना पूर्ण होती तो इससे भीकनगांव, गोगावां और खरगोन तहसील के 152 गांवों के हजारों किसान लाभान्वित होते। योजना से 33 हजार हेक्टेयर में सिंचाई का लक्ष्य रखा गया है। पत्रिका टीम योजना की जमीनी हकीकत देखने मैदान में उतरी। जिन क्षेत्रों में पानी पहुंचा, वहां समृद्धि की तस्वीर नजर आई, तो सूखे इलाकों में खाली खेत व पत्थर दिखाई दिए।
कुएं व ट्यूबवेल का वॉटरलेवल बढ़ा
भागीरथ कुमावत, किसान, टेमला ने बताया कि हमारे गांव की पूरी खेती वर्षा और भूमिगत जल पर आधारित थी, लेकिन खरगोन उद्वहन परियोजना ने पूरे क्षेत्र की तस्वीर बदल दी। इससे उत्पादन से सुधरा ही हमारी आर्थिक स्थिति भी सुधर गई। चार साल पहले तक पूरा इलाका सूखा था। दूर-दूर तक पानी नहीं था। पीने के लिए भी मुश्किल से पानी मिलता था। ऐसे समय में हमारी माली हालत बेहद खराब थी। बेटा-बेटियों की पढ़ाई और शादी के लिए कर्ज लेते थे, फिर क्षेत्र में नहर में पानी आया, तो जैसे हमारी जिंदगी संवर गई। साल में तीन फसलें (खरीफ, रबी और गर्मी) में कपास, मिर्च, गेहूं-चना और अब मक्का व मंूगफली ले रहे हैं। पीपरी डैम के पहले टेमला पंप हाउस से सीपेज पानी तालाब में छोड़ा गया है। जिससे आसपास के किसानों ने मोटर पंप लगाकर खेतों तक पानी ले आए। कुएं और ट्यूबवेल का वॉटर लेवल भी बढ़ गया है। जरूत पडऩे पर उसका भी उपयोग कर रहे हैं। गर्मी की सीजन की फसलों को उत्पादन दो गुना हो गया है, एक अतिरिक्त फसल भी अब लेने लगे हैं।
तीन चरणों में बनी योजना
साल 2010 में स्वीकृत हुई इस योजना पर
सरकार 750 करोड़ के लगभग राशि खर्च कर चुकी है। लेकिन इसे विडंबना कहें या जिम्मेदारों की लापरवाही कि 13 साल बाद भी योजना पूर्ण रूप से तैयार नहीं हो सकी। वर्ष 2014-15 में भीकनगांव के पास छिर्वा डेम (बीआर-वन) तैयार हुआ। इसके बाद सीधे पीपरी जलाश्य (बीआर-3) तक पानी लाया गया। अफसरों ने जल्दबाजी में गुणवत्ताविहीन काम किया। नतीजा ये रहा कि शुरुआत में ही पाइप लाइन फूटने लगी और किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाया।
नदी-नालों में छोड़े पानी से सिंचाई
परियोजना के लिए कई सालों की मेहनत के बाद भी पूर्ण रूप से सफलता नहीं मिली। क्योंकि योजना में डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम फेल रहा। किसानों के खेतों में
आउटलेट से सीधे पानी पहुंचना था। जिससे वर्तमान में 10 हजार हेक्टेयर में ही सिंचाई हो रही है। बड़ी मात्रा में पानी नदी-नालों व तालाबों में बहाया जा रहा है। इससे आसपास के किसानों द्वारा स्वयं के खर्च से मोटर पंप और पाइप डालकर सिंचाई की जा रही है।
किसान के साथ महिला व बच्चे भी थे खुश
निर्मल पाटीदार, किसान, रजूर ने बताया कि जब हमारे क्षेत्र को परियोजना में शामिल होने की जानकारी मिली थी तो किसानों के साथ महिलाएं और बच्चे भी खुश थे। किसान अपने खेतों लहलहाती फसलों के सपने देखने लगे थे। योजना शुरू हुई तो उसकी तकनीकी लापरवाही ने सपनों पर पानी फेर दिया। इसका खामियाजा क्षेत्र के किसानों को भुगतना पड़ रहा है। पीपरी जलाश्य से पानी आसपास के 20 गांवों तक सप्लाई होना था। जिसके लिए अंडर ग्राउंड पाइप बिछाकर किसानों के खेतों में आउटलेट (पेटी) तैयार किए। रजूर क्षेत्र में 34 आउटलेट बने हैं। जिसमें से सिर्फ 16 ही चालू है। बाकी बंद है। पीपरी डैम तक पानी आने के बाद एक उम्मीद जागी थी कि यह इलाका सिंचित होगा। दुर्भाग्य से ऐसा संभव नहीं हुआ। गांव के मुहाने पर तालाब में पानी पहुंचने से पीने की व्यवस्था हो गई, लेकिन किसानों के खेत खाली पड़े हैं। जहां इन दिनों धूल उड़ रही है। जमीन फसल की जगह गर्म हवा उगल रही है। 2015 से क्षेत्र के किसान पानी आने का रास्ता देख रहे हैं। रजुर के अलावा इच्छापुर, घेगांव, डोंगरगांव में पानी नहीं पहुंच पाया है।

एक नजर में …
2008 में घोषणा
2010 में स्वीकृति
550 करोड़ शुरुआती बजट-2014 में होना था पूर्ण
180 करोड़ का अतिरिक्त बजट जारी-33 हजार हेक्टेयर में सिंचाई का लक्ष्य

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