सैफुद्दीन ने बताया वह वॉल पेपर का काम करते हैं। एक बेटा, दो बेटियां है। तीनों की शादी हो चुकी है। सप्ताह में चार दिन काम करने के बाद तीन दिन सफाई को देते हैं। काम की शुरुआत में परिवार ने एतराज किया, लेकिन अब उन्हें कोई नहीं रोकता। उल्टा परिवार भी सहयोग करने लगा है।
सैफुद्दीन ने बताया बुढ़ापे के सहारे को लेकर उन्होंने अपने काम से तीन लाख रुपए जुटाए थे, लेकिन जमा पूंजी इस अभियान में ही खर्च की। सैफुद्दीन कहते हैं, स्वच्छ भारत का संदेश गांधीजी ने पहले ही दिया था, लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। यह समस्या अब बीमारी बनती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिया है, जल्दी ही इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे।
इस नेक काम में सैफुद्दीन को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। बीते दो साल कोरोना के चलते लॉकडाउन में चले गए। काम बंद रहा। ऐसे में उन्होंने एक-डेढ़ लाख रुपए कर्ज लेकर अभियान को जिंदा रखा। बेटे ने नौकरी से मिलने वाली पगार का कुछ हिस्सा भी उन्हें दिया।
सैफुद्दीन ने बताया इस काम में उन्हें प्रति माह करीब दस हजार रुपए का खर्च होता है। वे बड़े शहर जैसे मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली ट्रेन से जाते हैं। बोगियों में सफाई करते हैं। सैफुद्दीन ने बताया ट्रेन में २० से २५ बोरी कचरा निकलना सामान्य बात है। खरगोन की सफाई व्यवस्था को लेकर सैफुद्दीन कहते हैं कुछ इलाके बेहद साफ है, लेकिन कहीं गंदगी है। लोगों को जागरूकता दिखानी होगी।