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खरगोन

अस्सी साल की दोस्ती, एक साथ ली अंतिम सांस और दुनिया को कह गए अलविदा

गांव की गलियों, चौपाल और ओटलों पर अब सुने जाएंगे किस्से, मोगावां के दो बुजुर्गों की दोस्ती की कहानी

खरगोनJun 20, 2019 / 12:47 pm

हेमंत जाट

Two elderly people eight years friendship of death

गांव के ओटले पर बैठे डालूराम व कुंवर पाटीदार

चैतन्य पटवारी. मंडलेश्वर (खरगोन)
कहते है दो इंसानों के बीच रिश्ते भगवान बनाता है पर दोस्त, इंसान खुद चुनता है। दोस्ती में इंसान छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब जैसी बातों को नहीं सोचता है। बस जिससे दिल का रिश्ता जुड़ जाता है वही से दोस्ती शुरू हो जाती है। उसके बाद एक-दूसरे का सुख दुख अपना प्रतीत होता है। ऐसा ही एक वाकया देखने में आया समीपस्थ ग्राम मोगावा में, कुंवर पाटीदार एवं डालूराम जिराती का। जन्म के बाद दोनों ने होश संभालने के बाद से अपना जीवन ग्राम मोगावां में बिताया। दोनों की उम्र में तीन साल का अंतर के बाद भी दोस्ती ऐसी की दोनों ने अपनी पूरी जिंदगी एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ दिया। और मौत भी दोनों को अलग नही कर पाई। दोनों ने मंगलवार को एक घंटे के अंतराल पर अंतिम सांस ली और दुनिया को अलविदा कह गए। अभी तक ऐसी बातें सिर्फ फिल्मों में देखने और सुनने को मिलती थी। लेकिन मोगावां की गलियों, चौपाल और ओटलों पर इन दो बुजुर्गों की दोस्ती के किस्से सुनाए जा रहे हैं।
शिक्षा अलग-अलग पर पेशा एक समान
कुंवर पाटीदार का जन्म 1931 में हुआ वही डालूराम पाटीदार का जन्म 1934 में हुआ था। दोनों पाटीदार समाज से थे एवं दोनो का निवास मोगावां की एक ही गली में है। डालूराम से तीन साल बड़े कुंवर ने अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद खेती को अपना पेशा बनाया वही डालूराम पाटीदार ने भी अपनी शिक्षा पूर्ण करने बाद खेती को ही अपना पेशा बनाया। दोनों के एक-समान पेशे में आने के बाद से शुरू हुई दोस्ती मरते दम तक साथ रही और मौत भी दोनों को जुदा नहीं कर पाई। उनकी दोस्ती को देखते हुए परिवारवालों ने दोनों की चिता, मंडलेश्वर मुक्तिधाम पर एक साथ सजाई। साथ ही दोनों को एकसाथ मुखाग्नि भी दी गयी।
मौत खबर लगी दूसरे ने बंद कर ली आंखें
डॉ. देवेंद्र पाटीदार ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि विगत एक महीने से डालूराम की तबीयत खराब चल रही थी, वही विगत 10 दिनों से कुंवर की तबियत भी खराब चल रही थी। 18 जून को दोपहर ढाई बजे डालूराम ने अपनी अंतिम सांस ली। एक घंटे के बाद जैसे ही कुंवर को जब डालूराम के निधन की खबर लगी वैसे ही उन्होंने दु:ख के कारण अपनी आंखें बंद कर ली उसके बाद बंद आंखों में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
आखरी के बीस सालों में एक जैसी दिनचर्या
दोनों दोस्तों के द्वारा अपनी पारिवारिक एवं व्यावसायिक जिम्मेदारियां पूर्ण करने बाद दोनों ने अपना जीवन भगवान को समर्पित कर दिया। विगत 20 वर्षों से दोनो की दिनचर्या लगभग एक समान रही। सुबह दोनों एक साथ मंदिर जाते, दोपहर के समय भोजन इत्यादि से निपटाने के बाद दोनों दोस्त नियमित फिर मंदिर में मिलते। डालूराम को रामायण एवं सुंदरकांड पढऩे में बड़ा आनंद आता था। वही कुंवर को डालूराम द्वारा पढ़ी जा रही रामायण एवं सुंदर कांड सुनने में आनंद आता था।
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