पिता खुद भूखा रह लेगा। तन व मन की व्यक्तिगत इच्छाएं दबा लेगा। सुबह से देर रात तक व्यवसाय में परिश्रम कर घर-परिवार को पालेगा। वह पिता ही होता है जो खुद की इच्छाओं को दफन कर परिवार के हर सदस्य की आवश्यकतों पूरी करने में जीवन खफा देता है। ऐसा ही किशनगढ़ का एक टेलर परिवार है जिसने अपनी संतान की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया।
कड़े परिश्रम से बेटा-बेटी की पढ़ाई का खर्चा वहन किया। इसी का नतीजा है कि एक बेटी पहले ही चिकित्सक बन गई तो बेटा हाल ही नीट में पास हुआ है। किशनगढ़ के विरोटनगर निवासी रामबाबू छीपा का तडक़े उठकर मशीन में सूई-धागा पिरोकर कपड़े सिलाई करना रोजाना का काम है। इस कार्य में अधिक कमाई तो नहीं होती,लेकिन परिवार की रोजीरोटी का जुगाड़ जरूर हो जाता है। साथ में संतान की पढ़ाई का खर्चा भी इसी कमाई से निकाला है।
हाल ही रामबाबू के बेटे शुभम ने नीट परीक्षा उत्तीर्ण कर देशभर में १८५४ वां स्थान प्राप्त किया है। शुभम की मां मीना छीपा के अनुसार बेटे ने दिनरात मेहनत कर यह मंजिल पाई है। पूरा परिवार पति की अल्प कमाई पर निर्भर है,लेकिन उन्होंने संतान की परवरिश व पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी।
शुभम का लक्ष्य एमबीबीएस करने के बाद रेडियोलॉजिस्ट बनने का है। शुभम के अनुसार उसकी बड़ी बहन दीक्षा छीपा ने वर्ष 2014 में एआईपीएमटी और आरपीएमटी की परीक्षा पास की थी। अहमदाबाद और अजमेर के जेएलएन मेडिकल कॉलेज में नंबर आने पर उसने जेएलएन से एमबीबीएस की पढ़ाई की। दीक्षा ने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब उसका लक्ष्य कार्डियोलॉजिस्ट बनने का है।
बहन से मिला जज्बा शुभम के अनुसार बहन के परिश्रम से उसे सीख मिली। छह घंटे की नींद और कोचिंग आने-जाने के समय को छोडक़र उसने लगातार पढ़ाई की। बहन दीक्षा और माता-पिता ने भी हौंसला बढ़ाया। पढ़ाई के दौरान सोशल मीडिया से भी पूरी तरह दूरी बनाई रखी।
उसने मास्टर्स एकेडमी में राजेश शर्मा के निर्देशन में पढ़ाई की है। इससे पहले किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना की परीक्षा में भी देशभर में 7 वां स्थान प्राप्त किया था। इसमें उसे बीएससी करने पर उसे 80 हजार रुपए प्रतिवर्ष की छात्रवृत्ति मिलती थी,लेकिन उसने नीट एग्जाम देना तय किया। कक्षा १२ वीं के साथ ४९८ अंक प्राप्त किए थे। इस बार 720 में से 638 अंक प्राप्त किए हंै। शुभम प्रारंभ से ही प्रतिभावान छात्र रहा है। कक्षा में 9.4 सीजीपीए और कक्षा 12 में 93 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। नीट परीक्षा की तैयारी से पहले थोड़ा बहुत क्रिकेट खेलता था, लेकिन परीक्षा की तैयारी के दौरान यह भी छोड़ दिया था।
25 साल से सिलाई कार्य शुभम के पिता रामबाबू छीपा ने बताया कि वह भी डॉक्टर बनना चाहते थे। इसके लिए वर्ष १९८२ में जयपुर जिले के गांव गागरडू से यहां आकर पढ़ाई के लिए कक्षा ९ में प्रवेश लिया था, लेकिन आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के चलते पढ़ाई छोडऩी पड़ी। इसके बाद कुछ समय बैंक में कार्य भी किया। परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं को देखते हुए सिलाई कार्य करना शुरू करल दिया। तब से अब तक सिलाई कार्य से ही अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। दस साल पहले किराए की दुकान खाली करने के बाद घर पर ही सिलाई कार्य कर रहे हैं। इस सिलाई कार्य में उनकी पत्नी मीना भी पूरा सहयोग कर रही है। उनके बच्चों ने उनका सपना पूरा किया है।