उपेक्षा की शिकार होती हरमाड़ा की महल बावड़ी
पारंपरिक जल स्त्रोतों की अनदेखीजेएस. राठौड़किशनगढ़ (हरमाड़ा.)किशनगढ से मात्र 15 किमी दूर बसे ग्राम हरमाड़ा के पारंपरिक जल स्त्रोत बावडिय़ां अनदेखी का शिकार हो रही है। गांव में कहने को तो प्राचीन छ:ह बावडिय़ां है और यह एक समय था जब गांव की पानी की आपूर्ति का यही एक साधन मात्र थी, लेकिन धीरे धीरे जल स्तर नीचे जाने एवं एवं अनदेखी के कारण यह प्राचीन बावडिय़ां उपेक्षित होती चली गई। कभी हरमाड़ा की पहचान रही यह बावडिय़ा वर्तमान में स्वयं अपनी पहचान खोती जा रही है। उन्हीं बावडिय़ों में एक प्रमुख बावड़ी है यहां की महल बावड़ी जिसे संत बावड़ी भी कहा जाता है।
उपेक्षा की शिकार होती हरमाड़ा की महल बावड़ी
ग्रामीण गोपाल सिंह ,सूरज चौधरी, अजीज शेख एवं नंद सिंह ने बताया कि ग्राम में गोस्वामी मौहल्ले में शैव उपासकों का एक प्राचीन प्रसिद्ध मठ था एवं उस मठ में तत्कालीन महंत अपने शिष्यों के साथ यहीं रहकर शिव आराधना किया करते थे। मठ सहित पूरे ग्राम में पानी की समस्या को देखते हुए महंत ने अपने शिष्यों के सहयोग से करीब 300 साल पहले यहां एक बावड़ी का निर्माण करवाया। इसमें एक गहरा कुआं बनाया गया एवं कुए से पानी भरने के लिए उपर से नीचे तक चौड़ी सीढियां बनाई गई। ग्रामीण इन्ही सीढियों से उतरकर पानी भरते थे। ग्रामीणों ने बताया कि इस बावड़ी से मठ तक एक सुरंग भी बनाई गई थी। इस बावडी में पर्याप्त पानी होने के कारण इसके पानी से न केवल मठ के लोग बल्कि आधे से अधिक ग्रामीण भी अपनी पानी की जरूरत की पूर्ति करते थे। करीब 250 वर्षों तक इस बावड़ी ने यहां के लोगों की प्यास बुझाई थी, लेकिन पानी के अधिक गहराई में जाने और देखभाल एवं अनदेखी के चलते यह धीरे धीरे बिसरा दी गई और यह अब अनुपयोगी होती जा रही है। बावड़ी में अंदर तक सीढिय़ों के अलावा दोनो तरफ घाट बने हुए है, बावड़ी को आकर्षक बनाने के लिए इसके उपर छोटी छोटी महल नुमा गुमटियां बनाई गई थी और इसी वजह से इसे महल बावड़ी के नाम से भी पुकारा जाता है।
आज से करीब तीस साल पहले ग्राम के कई मोहल्लों केे लोग इसी बावड़ी से पानी भरते थे। पानी का स्तर नीचे जाने व बावड़ी के पास ही एक हैन्डप?प लग जाने के कारण लोगों ने इसका उपयोग करना बंद कर दिया। यदि इसको और गहरी करवाकर इसपर विद्युत मोटर लगादी जाए तो यह आज भी आधे ग्राम की प्यास बुझा सकती है।
-अजीज शेख, ग्रामीण।
पानी के दूसरे आसान स्त्रोत उपलब्ध होने के कारण आज लोग बावडिय़ों को भूलते जा रहे है, बावड़ी से पानी खेंचने या भरकर सीढिय़ां चढने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी इसलिए लोग आसान स्त्रोतों की ओर मुड गए साथ ही बावडिय़ों का जलस्तर भी या तो काफी नीचे चला गया या सूख गया इसलिए ये उपेक्षा की शिकार हुई।
-सूरज नुवाद, ग्रामीण।
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