इसमें से 125 के करीब दुकान और ठेलों पर कड़ी-कचौरी की बिक्री हो रही है। यहां पर सुबह 8 से लेकर रात्रि 12 बजे तक कचौड़ी मिलती है। दुकानों पर सुबह 8 बजे से कचौरी खाने के शौकीन पहुंच जाते हंै। कड़ी-कचौरी के बाद यहां पर समोसा और दाल पकवान की सर्वाधिक बिक्री हो रही है।
पिछले दस सालों में यहां पर कढ़ी-कचौरी खाने का चलन बढ़ा है। पहले इमली की चटनी के साथ कचौरी खाई जाती थी। हालांकि अभी भी कई दुकानदार कचौरी के साथ इमली की चटनी देते हैं। कुछ दुकानदार तो कढ़ी कचौरी पर प्याज और मिर्च आदि डालकर दे रहे हैं।
यहां पर होती सर्वाधिक बिक्री किशनगढ़ के रूपनगढ़ रोड ब्रिज के पास, मुख्य चौराहे, सुमेर सिटी, नया शहर, पुराना शहर, सरवाड़ी गेट, बस स्टैण्ड, मार्बल एरिया, हाउसिंह बोर्ड सहित कई स्थान जहां पर सर्वाधिक कढ़ी-कचौरी की बिक्री हो रही है।
फैक्ट फाइल – 150 करीब छोटी-बड़ी चाट पकौड़ी की दुकानें – 125 दुकानें और ठेलों कड़ी-कचौरी की बिक्री – 240-250 कचौड़ी प्रतिदिन की बिक्री – 40 लीटर एक दुकान पर कड़ी की बिक्री
कढ़ी -कचौरी का इसलिए बढ़ा चलन किशनगढ़ में कड़ी-कचौरी मुख्य रूप से सुबह नाश्ते के रूप में खाया जाता है। साथ ही यहां पर श्रमिक रोटी लेकर आते है और कढ़ी -कचौरी के साथ वह खाना भी खा लेते हैं। इसके चलते भी इसका चलन बढ़ रहा है। इसकी रेट भी 10 से 15 रुपए के बीच है। कढ़ी को सब्जी के रूप में काम में लेना आसान है।
साढ़े सात हजार के करीब समोसे की बिक्री किशनगढ़ में समोसे खाने वालों की संख्या कम है। मुख्य रूप से लड़कियों और महिलाओं को समोसे खाना अच्छा लगता है। इसके कारण यहां पर प्रतिदिन 7500 के करीब समोसों की बिक्री हो रही है।
30 साल से बेच रहे है कचौरी किशनगढ़ में पिछले दस सालों में ही कढ़ी-कचौरी का चलन बढ़ा है। चटपटा खाने के शौकीन होने के कारण इसका चलन बढ़ रहा है। इस काम से पिछले 30 सालों से जुड़ा हुआ हूं। पहले यहां पर कचौरी- चटनी के साथ ज्यादा पसंद करते थे, अब ट्रेड बदल गया है।
कैलाश चंद, दुकान संचालक