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कोलकाता

गोलियों की बौछार के बावजूद पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन

1971 जंग की झलक युद्ध के योद्धा के साथ–जंग में हिस्सा लेने वाले वायुसेना मेडल से सम्मानित विंग कमांडर डीजे क्लेर से विशेष बातचीत–दुश्मन के टैंक, शिप को किया था तबाह—हिन्दुस्तान में नेट जहाज में सबसे ज्यादा उड़ान भरने का गौरव प्राप्त

कोलकाताOct 07, 2018 / 10:29 pm

Shishir Sharan Rahi

kolkata

गोलियों की बौछार के बावजूद पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन

-वायुसेना दिवस पर पत्रिका विशेष

कोलकाता (शिशिर शरण राही). गोलियों की बौछार के बावजूद 1971 के जंग में पाकिस्तानी सीमा में 18 मिशन में वायुसेना मेडल से सम्मानित विंग कमांडर डीजे क्लेर ने तबाह कर दिए थे दुश्मन के टैंक, शिप और ट्रूप के कॉन्वाय। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के हीरो अपने पिता मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर के साथ युद्ध अभियान में हिस्सा लेने वाले विंग कमांडर डीजे क्लेर ने वायुसेना दिवस (08 अक्टूबर) से पहले पत्रिका संवाददाता से खास भेंट में 1971 जंग की झलक तरोताजा कर दी। विंग कमांडर डीजे क्लेर ने 12 डेज टू ढाका शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी है, जिसमें बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। जंग में क्लोज एयर सपोर्ट टू इंडियन आर्मी ट्रूप्स में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ ही हिन्दुस्तान में नेट जहाज में सबसे ज्यादा उड़ान भरने का गौरव भी इन्हें प्राप्त है। उन्होंने बताया कि जिस समय पाकिस्तान से युद्ध आरंभ हुआ उस समय उनकी पोस्टिंग 22 स्क्वाड्रन एयरफोर्स कलाईकुंडा में बतौर फ्लाइंग ऑफिसर थी। हेस्टिंग्स स्थित अपने निवास पर 71 वर्षीय विंग कमांडर डीजे क्लेर ने बताया कि जैसोर, खुलना, दौलतपुर, चिट्गांव ऑयल रिफाइनरी, ढाका, कुर्मीटोला एयरफील्ड में हवाई हमले सहित हार्डिंग ब्रिज में उन्होंने काफी एक्शन किए। खुलना में पाकिस्तान के बहुत सारे शिप बर्बाद करने के साथ एंटी शिपिंग ऑपरेशन, जैसोर में एंटी टैंक ऑपरेशन और दौलतपुर में ट्रूप ट्रेन और पाक मिलिट्री कॉन्वाय पर ऑपरेशन में भाग लिया था। उस जंग में पाक वायु सेना के ३एफ-८६ लड़ाकू विमान को मार गिराने वाले बोयरा फोर्स के सदस्य में भी वे शामिल थे। 25 अक्टूबर, 1971 को उनकी शादी सूची क्लेर से उस समय हुई जब पाकिस्तान के साथ संबंध तनावपूर्ण थे और युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। 300 साल से सैन्य सेवाएं देने वाले खानदान से ताल्लुक रखने वाले विंग कमांडर क्लेर के दादाजी ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था, जबकि ढाका के मुक्तिदाता के नाम से मशहूर इनके पिता मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर को महावीर चक्र, अतिविशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया था।
—–नियाजी के टेबल से उठा लाए थे झंडा
विंग कमांडर क्लेर ने बताया कि उनके पिता ने जनरल नियाजी के टेबल से उसका झंडा उठा लाया था, जिसे उन्होंने 15 दिसंबर, 2014 को सेना के पूर्वी कमांड मुख्यालय फोर्ट विलियम को सौंपा था और आज यह फोर्ट विलियम में जनरल ऑफिसर-कमांडिग-इन-चीफ के कार्यालय में है।
—-ढाका के मुक्तिदाता के नाम से मशहूर थे इनके पिता मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर
रेडक्रॉस की ओर से ढाका के मुक्तिदाता के नाम से मशहूर 1971 जंग के हीरो मेजर जनरल हरदेव सिंह क्लेर (1924-2016) भारतीय सेना के उन महान योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने 1965 और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लिया था। युद्ध में जनरल नियाजी को युद्ध के 12 दिनों में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया था। बहुत कम समय के भीतर सीमित संसाधनों के साथ उन्होंने जमालपुर पर कब्जा कर दिखाया, जो एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि जमालपुर गैरीसन एक अभेद्य किला था। इस अनूठी उपलब्धि के लिए मेजर जनरल क्लेर को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जबकि उनके सुपुत्र विंग कमांडर डीजे क्लेर को वायु सेना पदक (गैलेन्ट्री) मिला था।

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