कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए माकपा और तृणमूल कांग्रेस में से किसी एक को उपयुक्त साथी चुनने की रणनीति बना रही है। 2011 में वाममोर्चा के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस संग मिलकर और 2016 में माकपा से हाथ मिलाकर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस विधानसभा चुनाव मैदान में उतरी थी। दोनों चुनावों में कांग्रेस को फायदा पहुंचा। अब गठबंधन किससे किया जाए? इस सवाल पर प्रदेश कांग्रेस दो गुटों में बंट गई है। 2016 में वाममोर्चा से चुनावी तालमेल के सूत्रधार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी इस बार भी वाम मोर्चा से चुनावी समझौता करने के पक्ष में हैं। उन्होंने तृणमूल और भाजपा को मात देने के लिए 21 सुझाव वाली एक रिपोर्ट पार्टी को सौंपी थी। इनमें वाममोर्चा से गठबंधन करने का सुझाव भी शामिल है। लेकिन इसके उलट राज्य में कांग्रेस के गढ़ों में से एक मालदह लॉबी ने तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन के पक्ष में है।
उधर कांग्रेस की मालदह लॉबी तृणमूल से गठबंधन के पक्ष में है और इसकी पहल भी कर दी। एआईसीसी सचिव और फरक्का से विधायक मैनुल हक और मालदह दक्षिण लोकसभा क्षेत्र के सांसद अबु हासेम खान चौधरी ने गत 28 जून को तृणमूल महासचिव पार्थ चटर्जी से मुलाकात की और दिल्ली जा कर सोनिया गांधी को इसकी जानकारी दी। चौधरी ने कहा कि उन्होंने भाजपा को रोकने के लिए तृणमूल संग मिल कर लोकसभा चुनाव लडऩे का प्रस्ताव दिया। चटर्जी ने कहा कि इस मुद्दे पर सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के बीच बातचीत होनी है। राहुल गांधी के विदेश से वापस आने वे इस मुद्दे पर उनसे बात करेंगे।
हालांकि अधीर चौधरी का तर्क है कि तृणमूल दिन रात कांग्रेस पर हमले कर रही है। वह बंगाल से कांग्रेस का नामो निशान मिटा देना चाहती है। ऐसे में पार्टी से कैसे गठबंधन हो सकता है।
दूसरी ओर कांग्रेस से चुनावी तालमेल करने पर वाममोर्चा के दो बड़े घटक दलों ने मोर्चा से बाहर होने की धमकी दी है। फारवर्ड ब्लॉक के वरिष्ठ नेता नरेन देव ने माकपा से कहा है कि अगर पार्टी ने कांग्रेस से चुनावी तालमेल किया तो उनकी पार्टी मोर्चा से बाहर हो जाएगी। इससे पहले भाकपा ने भी कांग्रेस से तालमेल करने का विरोध करते हुए मोर्चा छोडऩे की घोषणा कर दी है।