कानूनविदो का कहना है कि लोगों की इस तरह से मौत की घटनाएं आपराधिक श्रेणी में आती हैं और इसके खिलाफ चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इस बारे में पूछने पर सर्विस डॉक्टर्स फोरम के महासचिव सजल विश्वास ने लोगों की मौत के लिए आंदोलनरत डॉक्टरों को जिम्मेदार मानने के बजाय राज्य सरकार को जिम्मेवार ठहराया।
उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को अधिकार है कि वह किसी भी तरह से हड़ताल कर सकते हैं। ऐसी सूरत में यह राज्य सरकार की जिम्मेवारी बनती है कि वह लोगों के इलाज के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करे लेकिन पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही और लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया। उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की जिम्मेवारी मुख्यमंत्री की थी इसलिए जो लोग भी मरे हैं उसके लिए सारी जिम्मेवारी उन्हीं की है।
इसके अलावा एक सप्ताह तक आंदोलन करने वाले जूनियर डॉक्टरों ने बड़े पैमाने पर मीडिया कर्मियों से भी बदसलूकी की थी। कई मीडिया कर्मियों को भद्दे कमेंट सुनने पड़े थे। कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने भी मीडिया की इमानदारी पर भी सवाल खड़ा कर दिया था। इस बारे पूछने पर उन्होंने मीडिया कर्मियों के साथ आंदोलनरत चिकित्सकों के बर्ताव को लेकर नाराजगी जाहिर की।
उन्होंने कहा कि अगर किसी भी जूनियर डॉक्टर ने मीडिया कर्मियों को गालियां दी है, अथवा उनके साथ बदसलूकी की है तो यह अन्याय है। ऐसा नहीं होना चाहिए था। मीडिया ने हमारी काफी मदद की थी। रात भर जागकर कवरेज दिया। पूरे देश में चिकित्सकों के आंदोलन को पहुंचाने में मीडिया की बड़ी भूमिका थी।
ऐसे में अगर किसी ने भी इस तरह की गलती की है तो उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। सजल ने स्वीकार किया कि चिकित्सकों के आंदोलन को सही तरीके से नियंत्रित और संचालित करने वाले लोग नहीं थे इसलिए कुछ लोगों ने मीडिया कर्मियों के साथ बदसलूकी की है।