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कोलकाता

बंगाल: हड़ताल के दौरान इतने ने तोड़ा दम! सुनकर चौंक जाएंगे

राज्य स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का दावा, कोलकाता में 8 की हुई मौत, पटरी पर लौटी स्वास्थ्य सेवा, सभी अस्पतालों के आउटडोर खुले

कोलकाताJun 18, 2019 / 08:23 pm

Rabindra Rai

kolkata

बंगाल: हड़ताल के दौरान इतने ने तोड़ा दम! सुनकर चौंक जाएंगे

कोलकाता. सरकारी डॉक्टरों की हड़ताल का भारी खमियाजा पश्चिम बंगाल के लोगों को भुगतना पड़ा है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बिना इलाज के इतने लोग दम तोड़ देंगे। महानगर के नीलरतन सरकार (एनआरएस) अस्पताल में गत 10 जून की रात जूनियर डॉक्टरों पर हमले के बाद ७ दिनों तक चिकित्सकों के हड़ताल के चलते 65 लोगों ने बिना इलाज दम तोड़ दिया है। राज्य स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने मंगलवार को यह दावा किया। हालांकि राज्य की स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने इसकी पुष्टि नहीं की है। पत्रिका से बातचीत में उन्होंने बताया कि इतनी मौत की उन्हें जानकारी नहीं है। इस बारे में पता लगाया जा रहा है। विभाग के सूत्रों के मुताबिक कोलकाता समेत राज्य के अन्य हिस्सों में महिलाओं, बच्चों और अन्य लोगों को मिलाकर कुल 65 लोगों ने बिना इलाज दम तोड़ दिया है। अकेले कोलकाता में आठ लोगों की मौत हुई है जिनमें दो महिलाएं, दो बच्चे भी शामिल हैं। दक्षिण 24 परगना में पांच लोगों की मौत हुई है, जबकि उत्तर 24 परगना में आठ लोगों ने दम तोड़ा है। इसी तरह से हावड़ा, हुगली, पूर्व और पश्चिम मिदनापुर, बर्दवान, बांकुड़ा, अलीपुरदुआर, सिलीगुड़ी आदि क्षेत्रों में भी लोगों की मौत बिना इलाज हुई है। इस बीच सोमवार रात हड़ताल खत्म के बाद मंगलवार को राज्य में स्वास्थ्य सेवा पटरी पर लौट आई। आंदोलनरत चिकित्सकों का धरना खत्म हो जाने के बाद मंगलवार सुबह से ही एनआरएस अस्पताल, एसएसकेएम, आरजीकर, कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज अस्पताल समेत अन्य सरकारी अस्पतालों में सेवा सामान्य हो गई है। अस्पतालों का आउटडोर पूर्ववत खोल दिया गया है। इमरजेंसी में भी वरिष्ठ डॉक्टर बैठे नजर आए। चिकित्सकों का आंदोलन चलने के दौरान जिन लोगों ने सामूहिक इस्तीफा दिया था उसे अस्वीकार कर दिया गया था।
कानूनविदो का कहना है कि लोगों की इस तरह से मौत की घटनाएं आपराधिक श्रेणी में आती हैं और इसके खिलाफ चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इस बारे में पूछने पर सर्विस डॉक्टर्स फोरम के महासचिव सजल विश्वास ने लोगों की मौत के लिए आंदोलनरत डॉक्टरों को जिम्मेदार मानने के बजाय राज्य सरकार को जिम्मेवार ठहराया।
उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को अधिकार है कि वह किसी भी तरह से हड़ताल कर सकते हैं। ऐसी सूरत में यह राज्य सरकार की जिम्मेवारी बनती है कि वह लोगों के इलाज के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करे लेकिन पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही और लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया। उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की जिम्मेवारी मुख्यमंत्री की थी इसलिए जो लोग भी मरे हैं उसके लिए सारी जिम्मेवारी उन्हीं की है।
इसके अलावा एक सप्ताह तक आंदोलन करने वाले जूनियर डॉक्टरों ने बड़े पैमाने पर मीडिया कर्मियों से भी बदसलूकी की थी। कई मीडिया कर्मियों को भद्दे कमेंट सुनने पड़े थे। कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने भी मीडिया की इमानदारी पर भी सवाल खड़ा कर दिया था। इस बारे पूछने पर उन्होंने मीडिया कर्मियों के साथ आंदोलनरत चिकित्सकों के बर्ताव को लेकर नाराजगी जाहिर की।
उन्होंने कहा कि अगर किसी भी जूनियर डॉक्टर ने मीडिया कर्मियों को गालियां दी है, अथवा उनके साथ बदसलूकी की है तो यह अन्याय है। ऐसा नहीं होना चाहिए था। मीडिया ने हमारी काफी मदद की थी। रात भर जागकर कवरेज दिया। पूरे देश में चिकित्सकों के आंदोलन को पहुंचाने में मीडिया की बड़ी भूमिका थी।
ऐसे में अगर किसी ने भी इस तरह की गलती की है तो उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। सजल ने स्वीकार किया कि चिकित्सकों के आंदोलन को सही तरीके से नियंत्रित और संचालित करने वाले लोग नहीं थे इसलिए कुछ लोगों ने मीडिया कर्मियों के साथ बदसलूकी की है।

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