नितीश के संवाद पर तालियों से गूंजता रहा कलामंदिर सभागार
नितीश के संवाद पर दर्शकों से खचाखच भरा कलामंदिर सभागार तालियों से गूंजता रहा। छन्द रुप में लिखित इस नाटक के समापन पर कृष्ण की भूमिका में नितीश ने कर्म का संदेश देते हुए कहा कि कर्मों से रचे स्वयं के चक्रव्यूह से कभी भी कोई मुक्त नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अगर हम जीवनरुपी चक्रव्यूह से लड़ते हुए इसको भेद विजयी होकर बाहर निकलना चाहते हैं तो हमें निश्चित तौर पर काम, क्रोध, लोभ, मोह सहित 7 बुरे चक्रों से खुद को बचाकर रखना होगा। इसलिए आज मनुष्य को कर्मभूमि में प्रतिज्ञा-शपथ की बजाय निष्ठावान होकर कर्म करना चाहिए। फल पर इंसान का न अधिकार पहले था, न आज है और न ही कल होगा। आने वाले युगों-युगों तक कर्म की प्रधान रहेगा। उन्होंने कहा कि महाभारत के रण में प्रतिज्ञा-शपथ के बाण चले, न कि तीरों के।
—नितीश ने रूपा को कहा सखी नितीश ने रूपा गांगुली को सखी और महान कलाकार कहकर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि सखा-सखी न भाई-बहन होते हैं, न प्रेमी-प्रेमिका और न ही पति-पत्नी। बल्कि यह एक ऐसा पावन-पवित्र अटूट रिश्ता होता है, जिसमें सखी रूपी एक महिला अपने मन की वेदना सहित हर बात-समस्या अपने पुरुष रूपी सखा से साझा करती है इस विश्वास के साथ कि उसका गलत इस्तेमाल नहीं होगा। रूपा ने अपने संबोधन में वनबंधु परिषद के पदाधिकारियों से उन्हें भी परिषद में शामिल करने का आग्रह किया।
—-ये रहे सक्रिय एकल अभियान के संरक्षक सज्जन भजनका, वनबंधु परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सज्जन बंसल, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रमेश सरावगी, राष्ट्रीय कार्यकारी सचिव रमेश माहेश्वरी, परिषद के कोलकाता अध्यक्ष रामानन्द रुस्तगी, श्रीहरि सत्संग समिति अध्यक्ष सत्यनारायण देवरालिया, मंत्री बुलाकीदास मीमानी ने स्वागत-सम्मान किया। परिषद के मंत्री मनोज कुमार मोदी ने परिषद की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। संचालन नीरज हाड़ोदिया ने किया। डायरेक्टर अतुल कौशिक के निर्देशन में दुर्योधन का किरदार निभाने वाले नई दिल्ली के कलाकार अखिलेश अरोड़ा सहित २५ कलाकारों को परिषद की ओर से सम्मानित किया गया। आयोजन की सफलता में सुभाष मुरारका, महेश भुवालका, विजय माहेश्वरी, नटवर बंग सहित सभी पदाधिकारियों-कार्यकत्र्ताओं का सक्रिय सहयोग रहा।