यहां हर पांच में से एक घर में भोजन का संकट
कोविड-19 महामारी ने देश और दुनिया को झकझोर दिया। महामारी की मार हर क्षेत्र पर पड़ी। शिक्षा और लोगों की आजीविका पर ज्यादा असर देखा गया। स्कूल संस्थान बंद कर दिए गए।
यहां हर पांच में से एक घर में भोजन का संकट
अनाज का मुफ्त वितरण नहीं किया होता तो स्थिति और बदतर होती
कोलकाता. कोविड-19 महामारी ने देश और दुनिया को झकझोर दिया। महामारी की मार हर क्षेत्र पर पड़ी। शिक्षा और लोगों की आजीविका पर ज्यादा असर देखा गया। स्कूल संस्थान बंद कर दिए गए। कंपनियों ने बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी कर दी। कई लोग रातों रात बेरोजगार हो गए। पश्चिम बंगाल के लोगों ने भी कोविड-19 महामारी की मार झेली। पहली लहर की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान हर पांच में से कम से कम एक घर ने किसी न किसी रूप में भोजन के संकट का सामना किया। अगर राज्य सरकार ने जन वितरण प्रणाली के जरिये अनाज का मुफ्त वितरण नहीं किया होता तो यह स्थिति बदतर हो सकती थी।
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अनुसूचित जनजाति में संकट अधिक
नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन के नेतृत्व वाले प्रतीची (इंडिया) न्यास की ओर से जारी एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट का शीर्षक स्टेयिंग अलाइव- कोविड-19 एंड पब्लिक सर्विसेज इन वेस्ट बंगाल है। इसके अनुसार, राज्य के अनुसूचित जनजाति समुदायों के घरों में भोजन का संकट, अन्य सामाजिक वर्गों के मुकाबले अधिक था।
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60 दिन तक यह परेशानी
रिपोर्ट में कहा गया कि अध्ययन के अनुसार, पांच में से एक घर में भोजन का किसी न किसी रूप में संकट पैदा हुआ। इस संकट की अवधि चार से 240 दिन के बीच रही। ज्यादातर घरों में लगभग 60 दिन तक यह परेशानी रही।
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ग्रामीण क्षेत्रों में मामले ज्यादा
शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के मामले ज्यादा सामने आए। अध्ययन में कहा गया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शहरी क्षेत्रों में आय का स्रोत ज्यादा स्थिर था। शहरी इलाकों में ज्यादातर घरों में लोगों को आय और पेंशन के माध्यम से कमाई होती रही। सर्वेक्षण में दावा किया गया कि अनुसूचित जनजाति के घरों में भोजन के संकट की अधिक मार पड़ी।
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खेती करने वाले ज्यादा संकट में
रिपोर्ट में कहा गया कि जिन घरों में भोजन का कुछ संकट पैदा हुआ उनमें से अधिकांश (29 प्रतिशत) वे थे जिनके आय का मुख्य स्रोत कृषि गतिवधियों में मजदूरी करना था। इसके बाद, गैर कृषि गतिविधियों से जीविकोपार्जन करने वाले 25 प्रतिशत लोग थे जिन्होंने भोजन के संकट के दंश को झेला। स्थिति बड़ी विकट रही।