—-मुगल साम्रा’य के अंतिम वर्षों के दौरान प्रमुख उर्दू और फारसी भाषा के कवि
महान शायर मिर्जा गालिब मुगल साम्रा’य के अंतिम वर्षों के दौरान एक प्रमुख उर्दू और फारसी भाषा के कवि थे। वे उर्दू भाषा के महान शायर थे और अपने जीवन के दौरान कई गज़लों को लिखा, जिसे बाद में विभिन्न लोगों द्वारा कई अलग-अलग भाषा में रूपांतरित किया गया।
मुगल काल के उर्दू भाषा के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली कवियों में से एक उन्हें माना जाता है। आज गालिब केवल भारत और पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लोकप्रिय है। मिर्जा गालिब के अधिकांश कविताओं और गज़लों को बॉलीवुड की विभिन्न फिल्मों में गाया जाता है। मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 में आगरा के काला महल में हुआ थे और उनके दादाजी, मिर्जा कूकन बेग खान एक सलजुक तुर्क थे जो अहमद शाह (1748-54) के शासनकाल के दौरान समरकंद (अब उजबेकिस्तान में) से भारत में आए थे। उनके पिताजी मिर्जा अब्दुल्ला बेग खान ने लखनऊ के नवाब के यहां लाहौर, दिल्ली और जयपुर में काम किया और अंत में आगरा के काला महल में बस गए। मिर्जा गालिब के पिता का अलवर में 180& में निधन हो गया और उन्हें राजगढ़ (अलवर, राजस्थान) में दफनाया गया तब मिर्जा ग़ालिब 5 साल के थे। उन्हें उनके चाचा मिर्ज़ा नासरुल्ला बेग खान ने गोद लिया था। ग़ालिब ने 11 वर्ष की आयु में कविता लिखना शुरू कर दिया। उनकी पहली भाषा उर्दू थी, लेकिन घर पर फ़ारसी और तुर्की भी बोली जाती थी। उन्होंने एक युवा उम्र में फारसी और अरबी में अपनी शिक्षा प्राप्त की और मुस्लिम परंपरा के अनुसार उमराव बेगम के साथ मिर्जा गालिब की शादी हुईं थी। ग़ालिब की फारसी में अपनी कविताओं की उपलब्धि थी, लेकिन आज वह उर्दू गज़लों के लिए और अधिक प्रसिद्ध हैं। ग़ालिब ने जीवन के रहस्यों को अपने गजलों के माध्यम से प्रस्तुत किया और कई अन्य विषयों पर गज़ल लिखी, गज़ल के दायरे का विस्तार करते हुए इस काम को उर्दू कविता और साहित्य में उनका सर्वो‘च योगदान माना जाता है। मिर्जा गालिब उर्दू और फारसी कविता के आसमान में चमकता हुआ तारा है। जिन्हें हम आज भी दिल से याद करते हैं।
महान शायर मिर्जा गालिब मुगल साम्रा’य के अंतिम वर्षों के दौरान एक प्रमुख उर्दू और फारसी भाषा के कवि थे। वे उर्दू भाषा के महान शायर थे और अपने जीवन के दौरान कई गज़लों को लिखा, जिसे बाद में विभिन्न लोगों द्वारा कई अलग-अलग भाषा में रूपांतरित किया गया।
मुगल काल के उर्दू भाषा के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली कवियों में से एक उन्हें माना जाता है। आज गालिब केवल भारत और पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लोकप्रिय है। मिर्जा गालिब के अधिकांश कविताओं और गज़लों को बॉलीवुड की विभिन्न फिल्मों में गाया जाता है। मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 में आगरा के काला महल में हुआ थे और उनके दादाजी, मिर्जा कूकन बेग खान एक सलजुक तुर्क थे जो अहमद शाह (1748-54) के शासनकाल के दौरान समरकंद (अब उजबेकिस्तान में) से भारत में आए थे। उनके पिताजी मिर्जा अब्दुल्ला बेग खान ने लखनऊ के नवाब के यहां लाहौर, दिल्ली और जयपुर में काम किया और अंत में आगरा के काला महल में बस गए। मिर्जा गालिब के पिता का अलवर में 180& में निधन हो गया और उन्हें राजगढ़ (अलवर, राजस्थान) में दफनाया गया तब मिर्जा ग़ालिब 5 साल के थे। उन्हें उनके चाचा मिर्ज़ा नासरुल्ला बेग खान ने गोद लिया था। ग़ालिब ने 11 वर्ष की आयु में कविता लिखना शुरू कर दिया। उनकी पहली भाषा उर्दू थी, लेकिन घर पर फ़ारसी और तुर्की भी बोली जाती थी। उन्होंने एक युवा उम्र में फारसी और अरबी में अपनी शिक्षा प्राप्त की और मुस्लिम परंपरा के अनुसार उमराव बेगम के साथ मिर्जा गालिब की शादी हुईं थी। ग़ालिब की फारसी में अपनी कविताओं की उपलब्धि थी, लेकिन आज वह उर्दू गज़लों के लिए और अधिक प्रसिद्ध हैं। ग़ालिब ने जीवन के रहस्यों को अपने गजलों के माध्यम से प्रस्तुत किया और कई अन्य विषयों पर गज़ल लिखी, गज़ल के दायरे का विस्तार करते हुए इस काम को उर्दू कविता और साहित्य में उनका सर्वो‘च योगदान माना जाता है। मिर्जा गालिब उर्दू और फारसी कविता के आसमान में चमकता हुआ तारा है। जिन्हें हम आज भी दिल से याद करते हैं।
ग़ालिब के शेर —दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है-आखिर इस दर्द की दवा क्या है?
—हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले
—वादे पे वो ऐतबार नहीं करते,
हम जिक्र मोहब्बत सरे बाजार नहीं करते,
डरता है दिल उनकी रुसवाई से,
और वो सोचते हैं हम उनसे प्यार नहीं करते।
इस दिल को किसी की आहट की आस रहती
है, निगाह को किसी सूरत की प्यास रहती है,
तेरे बिना जिन्दगी में कोई कमी तो नही, फिर
भी तेरे बिना जिन्दगी उदास रहती है।
—हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले
—वादे पे वो ऐतबार नहीं करते,
हम जिक्र मोहब्बत सरे बाजार नहीं करते,
डरता है दिल उनकी रुसवाई से,
और वो सोचते हैं हम उनसे प्यार नहीं करते।
इस दिल को किसी की आहट की आस रहती
है, निगाह को किसी सूरत की प्यास रहती है,
तेरे बिना जिन्दगी में कोई कमी तो नही, फिर
भी तेरे बिना जिन्दगी उदास रहती है।