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कोलकाता

गोपाष्टमी : गौवंश के सत्कार का पर्व

आस्था : घर-परिवार में होता है लक्ष्मी का वास

कोलकाताNov 15, 2018 / 09:41 pm

Rabindra Rai

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गोपाष्टमी : गौवंश के सत्कार का पर्व

कोलकाता

गोपाष्टमी हमारे निजी सुख और वैभव में हिस्सेदार होने वाले गौवंश के सत्कार का पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस पर्व को करने से धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। घर-परिवार में लक्ष्मी का वास होता है। जो मनुष्य सुबह स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है।
एक मान्यता के मुताबिक द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया तभी से इस महोत्सव को मनाने की परम्परा शुरू हुई। श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर अवतार लेकर गिरिराज गोवर्धन का मान बढ़ाने तथा गोसंवर्धन के लिए एक लीला की।
प्राचीनकाल से ब्रज क्षेत्र में देवाधिदेव इन्द्र की पूजा की जाती थी। लोगों की मान्यता थी कि इन्द्र समस्त मानव जाति, प्राणियों, जीव जंतुओं को जीवन दान देते हैं और उन्हें तृप्त करने के लिए वर्षा भी करते हैं। इन्द्र को इस बात का बहुत अभिमान हो गया कि लोग उनसे बहुत अधिक डरने लगे हैं। श्री कृष्ण भगवान ने नंद बाबा को कहा कि वन और पर्वत हमारे घर हैं। गिरिराज गोवर्धन की छत्रछाया में उनका पशुधन चरता है उनसे सभी को वनस्पतियां और छाया मिलती है। गोवर्धन महाराज सभी के देव, हमारे कुलदेवता और रक्षक हैं, इसलिए सभी को गिरिराज गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए।
नंद बाबा की आज्ञा से सभी ने जो सामान इन्द्र देव की पूजा के लिए तैयार किया था उसी से गिरिराज गोवर्धन की पूजा की। सभी ने बड़े आनंद से गिरिराज भगवान का प्रसाद खाया और जो बचा उसे सभी में बांटे। इन्द्र को पता चला तो उन्हें बड़ा क्रोध आया। उन्होंने गोकुल पर इतनी वर्षा की कि चारों तरफ जल भर गया। भगवान श्री कृष्ण ने तब गिरिराज पर्वत को अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों की भारी वर्षा से रक्षा की। जब इन्द्र को वास्तविकता का पता चला तो उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाता है।
अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन नन्द बाबा ने श्रीकृष्ण को स्वतन्त्र रूप से गायों को वन में ले जाकर चराने की स्वीकृति दी थी।
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देह में समस्त देवी-देवताओं का वास
गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि गाय समस्त प्राणियों की माता है। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं। सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है कि गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।
प्राचीन ग्रंथ वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं।

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