छाती पर 50 किलो वजन के साथ खींच रहे हाथ रिक्शा!
परिजनों की परवरिश के लिए पसीना नहीं, बल्कि खून बहा रहे— महानगर में बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच मेहनत की मजबूरी
छाती पर 50 किलो वजन के साथ खींच रहे हाथ रिक्शा!
कोलकाता (शिशिर शरण ‘राही’). दिन ब दिन जहरीले हो रहे धुएं के बीच ‘हाथ रिक्शा’ चलाते हुए सांस लेने में तकलीफ होती है। शरीर रोकता है कि सिटी ऑफ ज्वॉय में बढ़ते प्रदूषण-जहरीले होते धुएं से दूर भाग जाऊं, लेकिन परिजनों की परवरिश सहित पापी पेट के लिए पसीना नहीं, बल्कि खून बहाकर तमाम विपरीत स्थितियों के बावजूद छाती पर 50 किलो वजन के साथ हाथ रिक्शा खींचना मजबूरी है। परिवार के लिए कमाना है और हम कहां जा सकते? कुछ इसी तरह के सवालिया लहजे में औपनिवेशक युग और श्रम दासता के प्रतीक मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाले फिरंगियों के शासनकाल के परिवहन माध्यम ‘हाथ रिक्शा’ चलाने वालों ने पत्रिका पड़ताल में गुरुवार को अपने दर्द बयां किए। दशकों से हाथ हिक्शा की कमान संभाल रहे बिहार के अनेक रिक्शा चालक खून जला और पसीना बहाकर पेट की खातिर हाथ रिक्शा खींचते हैं, पर किसी के आगे हाथ नहीं पसारते। पिछले कई सालों से रिक्शा चलाकर खुद का पेट भरने के साथ परिजनों की परवरिश कर रहे बिहार के नवादा जिले के निवासी राम यादव आज भी खुदगर्ज की मिसाल पेश कर रहे हैं। कोलकाता की गलियों में हाथ रिक्शा चलाने वाले यादव ने कहा कि अगर इसके बदले सरकार की ओर से कोई दूसरे विकल्प की व्यवस्था की जाए, तो उन्हें काफी खुशी मिलेगी। इसी तरह कोलकाता में पिछले 40 साल से रिक्शा चला रहे नवादा जिले के सिरदला थाने के पोस्मातरी गांव निवासी कुलदीप यादव (66), बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के जयनगर थाना क्षेत्र के उजर गांव निवासी 65 वर्षीय कासिम मंडल पिछले 3० साल से एमजी रोड सहित विभिन्न स्थानों में रिक्शा चला रहे हैं। मंडल ने बताया कि वे 45 साल से ज्यादा समय से कोलकाता में रह रहे हैं। गया निवासी नारद महतो, दरभंगा के लोरिका पासवान (58), झारखंड के गिरिडीह निवासी मोहन गोसाईं, गया निवासी युवा पिंटू यादव ने भी हाथ रिक्शा को मजबूरी में चलाने वाला पेशा बताकर अपनी परेशानी-पीड़ा बताई। लगभग सभी ने एक स्वर में कहा कि खुद का पेट पालने और परिवार को चंद पैसे भेजने के लिए रिक्शा चलाना शुरू किया था। इसके बाद घर किराए पर लेने के लिए पैसा जब नहीं बचने लगा, तो सडक़ों पर सोना शुरू कर दिया। इनका कहना है कि बस एक बिस्तर की तमन्ना है। यह मालूम है कि ये एक दूर का सपना है। 2 वक्त ठीक से खाना चाहते, लेकिन वो भी मुनासिब नहीं। कम से कम साफ हवा में सांस लेने की उम्मीद करते हैं जो दिनोंदिन बिगड़ती कोलकाता की हवा, प्रदूषण-जहरीले धुएं में नामुमकिन हो गया। महानगर में हवा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। बढ़ते प्रदूषण स्तर से रिक्शा चलाने वाले सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। रिक्शा खींचने से फेफड़ों पर ज्यादा दबाव पड़ता है। परिवार इनपर निर्भर है, इसलिए भले ही सांस लेने में तकलीफ हो पर हाथरिक्शा खींचना विवशता है।
—तब की थी प्रतिबंध की घोषणा
2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ‘हाथ रिक्शा’ पर प्रतिबंध लगाकर चालकों के पुनर्वास की घोषणा की थी, पर मामला आजतक अधर में है। इस संबंध में वर्तमान परिवहन मंत्री शुभेन्दु अधिकारी से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
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