लॉकडाउन से होटल हुआ बंद, तो सामुदायिक रसोइयों में शुरू कर दिया खाना बनाना
CORONA ALERT BENGAL_Hotel closed due to lockdown, so community cooks started cooking, कोरोना के कहर से जूझते कर्मवीर, जोश, जज्बा और जुनून , कई रसोइये विभिन्न क्लबों और एनजीओ संचालित सामुदायिक रसोईयों में खाना बनाते हुए भूखों का भर रहे पेट, पेश कर रहे इन्सानियत-मानवता की मिसाल
लॉकडाउन से होटल हुआ बंद, तो सामुदायिक रसोइयों में शुरू कर दिया खाना बनाना
कोलकाता. कहा जाता है कि …..जहां चाह, वहां राह। पूरी दुनिया में महामारी घोषित एक तरफ कोरोना वायरस का कहर तो दूसरी ओर इसके बढ़ते संक्रमण रोकने के लिए लागू लॉकडाउन। नतीजा होटल, दुकान-रेस्टोरेंट, चाय-पान दुकान आदि सब बंद। लॉकडाउन से होटल बंद होने की इस विषम परिस्थिति में भी पूरे जोश, जज्बा और जुनून के साथ कई रसोइये कोलकाता के विभिन्न क्लबों और एनजीओ संचालित सामुदायिक रसोईयों में खाना बनाते हुए भूखों को भरपेट भोजन कराकर सही मायनों में इन्सानियत-मानवता की मिसाल पेश कर रहे। एक ओर जहां लॉकडाउन में कोलकाता में अनेक लोग अपने-अपने घरों में सुकून से ठाठ का जीवन बसर कर रहे, वहीं दूसरी ओर खुद की जान की परवाह किए बगैर असहायों, भूखों का पेट भरने में ये कर्मवीर दिन-रात जुटे हुए हैं। इससे बड़ा इस जगत में कोई और धर्म नहीं, न कोई सेवा। जी हां, सच्चे अर्थों में ये ही हैं कोरोना से जूझते असली कर्मवीर जो कोरोना वायरस से संघर्ष में अपना अहम योगदान दे रहे। सामुदायिक रसोइयों में खाना बनाने वालों में शुमार बिहार के गया का निवासी राजेश शाह कई साल से काकुरगाछी में एक होटल में खाना बनाता था। लेकिन लॉकडाउन के कारण उसके नियोक्ता ने होटल बंद कर दिया। इसके बाद राजेश ने सामुदायिक रसोई में सैकड़ों कामगारों और भिखारियों के लिए खाना बनाना शुरू कर दिया। शाह की तरह बंद हुए कई होटलों के कई रसोइये पूरे कोलकता में सैकड़ों जरूरतमंदोंं को खाना खिला रहे। शाह 23 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद से अपने घर नहीं लौट सका, जिसका उसे काफी मलाल है। तभी उसी समय किसी स्थानीय समूह ने उससे संपर्क कर 100 पुलिसकर्मियों, सफाई कर्मचारियों और पास के अस्पतालों के नर्स आदि के लिए खाना बनाने को कहा तो शाह ने खुशी यह काम बिना किसी पारिश्रमिक के करना स्वीकार किया। शाह के शब्दों में इतने साल तक यहां रहने के बाद लौ-चिंगड़ी, सोयाबीन तरकारी, डिम करी, मुर्गिर झोल और खिचड़ी बना लेता हूं। इसके साथ ही वह क्लब के 2 सहायकों की सहायता से सभी बंगाली व्यंजनों को बना लेता है। उसने कहा कि उसका एकमात्र मकसद सभी को भोजन स्वादिष्ट देना है और यही उसके लिए सबसे बड़ी संतुष्टि व उपलब्धि है। क्लब के सदस्य रंजीत डे ने कहा कि लॉकडाउन के 4 दिन बाद 27 मार्च को यह पहल शुरू की। जिस तरह से मदद के लिए हाथ बढ़ाया उससे वे खुश हैं। उसने टोकन राशि भी लेने से इनकार कर दिया। डे ने कहा कि स्थानीय व्यापारियों और इलाके के लोगों ने भी मदद की जो पूरी तरह गैर-राजनीतिक है। शाह की तरह बीबीडी बाग के बसंता होटल के शिबू, खिदिरपुर में सडक़ किनारे होटल में काम करने वाले संतोष राणा जैसे कई रसोइये विभिन्न क्लबों और एनजीओ संचालित सामुदायिक रसोईयों में खाना बनाकर कोरोना वायरस से संघर्ष में अपना योगदान दे रहे।
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