SPEECH OF RASHTRASAINT VIRAGSAGAR: मुनि कभी असत्य वचन नहीं बोलते : विरागसागर महाराज
बेलगछिया में विराजमान राष्ट्रसंत विरागसागर का मंगल उद्बोधन–लोक में प्रचलित भाषा जनपद सत्य कहलाती —-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह आदि पापों को बढ़ाने वाले हैं
SPEECH OF RASHTRASAINT VIRAGSAGAR: मुनि कभी असत्य वचन नहीं बोलते : विरागसागर महाराज
कोलकाता. बेलगछिया में विराजमान राष्ट्रसंत गणाचार्य विरागसागर महाराज ने मंगल उद्बोधन देते हुए एक भाषा समिति का कथन किया है। इसका अर्थ है सदैव हित-नित-प्रिय वचन बोलना। उन्होंने कहा कि मुनि कभी असत्य वचन नहीं बोलते, कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो उनके मुख से सदैव सत्य वचन ही निकलते हैं अथवा वे मौन रहते हैं। कुछ भी नहीं बोलते लेकिन असत्य कभी नहीं बोलते। उन्होंने कहा कि लोक में प्रचलित भाषा जनपद सत्य कहलाती है। जैसे घी का घड़ा, दूध का गिलास, आटा पीसना, भात बनाना आदि यद्यपि घी का कोई घड़ा आज तक नहीं बना, घड़ा तो वैसे मिट्टी का होता है, पर उसमें घी रख देने से उसे घी का घड़ा कह दिया जाता है।
दूध का गिलास भी कभी बना, दूध भर देने से वह दूध का गिलास कहा जाता है। उसाी प्रकार आटा नहीं पीस जाता, पीसे तो गेहूं जाते हैं। लेकिन आटा पीसना कह दिया जाता है।
भात नहीं बनाया जाता, बनाया तो चावल जाता है, लेकिन भात बनाया रहा जाता है। इसी प्रकार और भी जो वचन कहे जाते हैं वे लोक प्रचलित होने से जनपद सत्य कहे जाते हैं, इसलिए वे जगत मान्य है। विरागसागर ने कहा कि जो वचन सत्य होने पर भी हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह आदि पापों को बढ़ाने वाले हैं वे वचन सत्य होने पर भी असत्य की तरह है। इसलिए अपना हित चाहने वाले प्राणियों को ऐसे पापवर्धक वचन कभी नहीं बोलना चाहिए सज्जन पुरुष सदैव दूसरों के कल्याणकारी वचनों का प्रयोग करते हैं, तभी वे महापुरुष कहलाते हैं। उनके सान्निध्य में पल रही गोम्टसार कर्मकाण्ड का तत्वार्थसूत्र, चौबीस ठाणा आदि ग्रंथों की 30 अगस्त को परीक्षा होगी, जिसमें उत्तीर्ण होने वालों को सम्मान पूर्वक प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा। साथ ही आने वाले पर्युषण पर्व में श्रावक साधना का प्रगटीकरण करने वाला श्रावक साधना संस्कार शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें भाग लेने वाले सभी शिविरार्थियों के आवास, भोजन की समुचित व्यवस्था रखी गई है।
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