उल्लेखनीय है कि फिलहाल प्रदेश के ज्यादातर नगर निकायों पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है। लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के 18 सांसदों की जीत से तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व कुछ संशय में भी है। इस तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है कि लोकसभा चुनाव जैसा ही परिणाम न हो जाए। ऐसा हुआ तो भारी संख्या में निकाय तृणमूल कांग्रेस के हाथ से निकल सकते हैं। संभवत: इसी को ध्यान में रखते हुए ममता सरकार ने चुनाव से ठीक पहले राज्य के कई हजार क्लबों की जेब भरने का निर्णय किया है। ज्ञातव्य है कि पिछले साल जनवरी में नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजित खेलश्री योजना के तहत राज्य के 4300 क्लबों को दो-दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गई थी। इसके साथ ही बंगाल ओलंपिक एसोसिएशन से संबंद्ध राज्य के 34 खेल संघों को राज्य सराकर ने पांच-पांच लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी थी। इस साल फिर इन क्लबों को इसी तरह धनराशि दी जाएगी।
625 करोड़ का बजट इंडोर स्टेडियम में मुख्यमंत्री ने पिछले साल क्लबों को संबोधित करते हुए कहा था कि वाममोर्चा सरकार के कार्यकाल में खेल और युवा विभाग का बजट महज 73 करोड़ का ही था। 2011 में उनकी सरकार के सत्ता संभालने के बाद विभाग का बजट बढ़ता गया। वर्ष 2018-19 में खेल व युवा विभाग का बजट करीब पांच गुना बढ़ाते हुए 515 करोड़ कर दिया गया। इस साल राज्य के बजट में खेल विभाग को 625 करोड़ रुपए देने का प्रावधान किया गया है।
खेलकूद जिंदा रहेगा
बंगाल ओलंपिक एसोसिएशन के संयुक्त सचिव शंभू सेठ ने कहा कि राज्य सरकार ने जो दरिया दिली दिखाई है उससे प्रदेश का खेलकूद जिंदा रहेगा। इससे पहले राज्य में जो सरकार थी वह खेलकूद के नाम पर संघों को कुछ भी नहीं देती थी। तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने 2017 से क्लबों और संघों को आर्थिक सहायता देनी शुरू की है। यह स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार से यहां के खिलाडिय़ों को और भी उम्मीदें हैं। उसे राज्य सरकार को पूरा करना चाहिए। यहां के खिलाड़ी चाहते हैं कि अन्य राज्यों की तरह उन्हें भी डायरेक्ट नौकरी और स्कॉलरशिप दी जाए। पश्चिम बंगाल में राज्य या राष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों को नौकरी नहीं मिलने की वजह से वे हताश होकर अन्य राज्यों में खेलने के लिए चले जाते हैं।