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कोलकाता

महामारी में भी नहीं रुकी पैंगोलिन की तस्करी

कोरोना महामारी के बाद भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त पशु पैंगोलिन की अवैध तस्करी रुक नहीं रही है जबकि दुनिया के कई वैज्ञानिक पैंगोलिन में भी कोरोना वायरस होने के दावे कर चुके हैं। महामारी से पहले तक भारत से पैंगोलिन की तस्करी चरम पर होती रही। हालांकि महामारी फैलने के बाद कुछ समय के लिए तस्करी रुक गई थी लेकिन फिर से तस्कर चोरी-छिपे सक्रिय हो गए हैं।

कोलकाताSep 24, 2020 / 04:55 pm

Rabindra Rai

महामारी में भी नहीं रुकी पैंगोलिन की तस्करी

महामारी में भी नहीं रुकी पैंगोलिन की तस्करी

पूर्वोत्तर राज्यों में कई बार धरे गए तस्कर
चीन, म्यांमार, वियतनाम आदि देशों में बड़ी कीमत पर सौदे
दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी होने वाला जानवर है पैंगोलिन
कोलकाता. कोरोना महामारी के बाद भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त पशु पैंगोलिन की अवैध तस्करी रुक नहीं रही है जबकि दुनिया के कई वैज्ञानिक पैंगोलिन में भी कोरोना वायरस होने के दावे कर चुके हैं। महामारी से पहले तक भारत से पैंगोलिन की तस्करी चरम पर होती रही। हालांकि महामारी फैलने के बाद कुछ समय के लिए तस्करी रुक गई थी लेकिन फिर से तस्कर चोरी-छिपे सक्रिय हो गए हैं। वन क्षेत्रों में सक्रिय शिकारी और तस्कर 5 से 10 लाख रुपए तक में पैंगोलिन बेच देते हैं। जबकि अंतरराष्ट्रीय रैकेट इससे कई गुना ज्यादा कीमत पर इन्हें बेचते हैं। पैंगोलिन की चीन, वियतनाम, म्यांमार आदि देशों में तस्करी की जा रही है। पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किए जाने वाला जानवर है।

चीन में सबसे ज्यादा तस्करी
कोरोना संक्रमण का जनक चीन को माना जा रहा है। क्योंकि शांत और एकांत पसंद इस निशाचर स्तनपायी पशु पैंगोलिन की सबसे ज्यादा तस्करी चीन में ही होती है। जो देश के पूर्वोत्तर राज्यों के रास्ते से म्यांमार और चीन में तस्करी होती है। चीन में चिकित्सा, दवा बनाने और शोध में इसका इस्तेमाल करते हैं। साथ ही लैब में जीवित पैंगोलिन पर प्रयोग किए जाते हैं। पैंगोलिन के शल्क, मांस और शरीर के विभिन्न अंगों के लिए शिकार भी किए जाते हैं।

9 साल में 5772 पैंगोलिन बने शिकार
वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क ट्रैफिक की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार 2009 से 2017 तक देश में 5772 पैंगोलिन अवैध व्यापार की भेंट चढ़ गए थे। इस अवधि के दौरान कई कार्रवाई हुई जिसमें बड़ी तादाद में पैंगोलिन के शल्क व अंग जब्त किए गए। वहीं मणिपुर तस्करी का हॉटस्पॉट बनकर उभरा है। 2013 से 2017 के दौरान महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी मामले दर्ज किए गए जबकि यह सिलसिला अभी भी जारी है।

फिर भी असर नहीं
बाघ, तेंदुए व हाथी के समान पैंगोलिन को भी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित किया गया है। अपराध पर तीन से सात साल का कारावास और दस हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। बावजूद इसके पैंगोलिन की तस्करी रुक नहीं रही है।

जुड़े हैं अंतरराष्ट्रीय तार
एक वन्यजीव अधिकारी ने बताया कि देश में पैंगोलिन की तस्करी बड़े स्तर पर होती रही है और यह अभी भी थम नहीं रही है। देश में कहीं भी किसी भी स्तर पर पैंगोलिन की खपत नहीं है। भारत में कहीं भी ऐसा बाजार नहीं है जहां जीवित या इसका मांस बिकता हो लेकिन चीन और वियतनाम जैसे देशों में इसका बाजार है। जहां तस्करी से अंतरराष्ट्रीय रैकेट को जीवित और मृत पैंगोलिन के सौदे की बड़ी कीमत मिलती है। वन्यजीव अपराध नियंत्रण बोर्ड के सदस्य रोहन भाटे ने बताया कि देश में पैंगोलिन की तस्करी रोकने के लिए कठोर कदम उठाना जरूरी है। क्योंकि तस्करी के पीछे एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है।

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