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कोलकाता

जीवन का रस हैं कविताएं: डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

कविताएं जीवन में रस का संचार करती हैं। हृदयहीन को सहृदय बनाती हैं। ये भावना की खुराक भी पूरी करती हैं। यह कहना है शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल का। वे कहते हैं कि अध्यापन मेरा पेशा है पर साहित्य मेरे हृदय से जुड़ा हुआ है।

कोलकाताDec 01, 2021 / 12:28 am

Rabindra Rai

जीवन का रस हैं कविताएं: डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

जीवन का रस हैं कविताएं: डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

बोले, अध्यापन मेरा पेशा है पर साहित्य मेरे हृदय से जुड़ा
रवींद्र राय
कोलकाता. कविताएं जीवन में रस का संचार करती हैं। हृदयहीन को सहृदय बनाती हैं। ये भावना की खुराक भी पूरी करती हैं। यह कहना है शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल का। वे कहते हैं कि अध्यापन मेरा पेशा है पर साहित्य मेरे हृदय से जुड़ा हुआ है। विभिन्न मानसिक स्थितियों में अनायास कुछ पंक्तियां मस्तिष्क में कौंधने लगती हैं और मैं तुरंत लिख लेता हूं। कविता में गीत और गजल लिखना मुझे अधिक प्रिय है।

चार दशक से साहित्य-सृजन
डॉ. मिश्र पिछले चार दशक से साहित्य-सृजन कर रहे हैं। हिंदी और भोजपुरी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, दैनिक/साप्ताहिक पत्रों एवं इंटरनेट पत्रिकाओं में उनकी कविताएं, कहानी, समीक्षा, परिचर्चा, यात्रा वृत्तांत, डायरी प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी डॉ. मिश्र की कविताएं प्रसारित होती रहती हैं।

विभिन्न विधाओं के धनी
हिन्दी से एम.ए., स्वर्णपदक प्राप्त, पी.एच.डी., बी.एड। पटना स्थित केंद्र सरकार के एक स्वायत्तशासी शैक्षिक संस्थान में हिंदी के स्नातकोत्तर अध्यापक डॉ. मिश्र न केवल विभिन्न विधाओं में लिखते हैं, बल्कि स्वयं विमल के साथ कई प्रतिष्ठित गायकों के स्वर में भी उनके छह दर्जन से अधिक भोजपुरी गीतों की रिकॉर्डिंग विभिन्न कंपनियों ने कराई है। आज भी वे गीतकार और गायक रूप में सक्रिय हैं।

पहली कविता 12 वर्ष की उम्र में
हिंदी और भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मिश्र बिहार के बक्सर जिले के हैं। डॉ. मिश्र की पहली हिंदी कविता 12 वर्ष की उम्र में और पहली भोजपुरी कविता 16 वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुई है। इनकी कविताएं लंबी नहीं होतीं। कम शब्दों और बोलचाल की साधारण शैली मे होती है।

प्रकाशित पुस्तकें
डॉ. मिश्र की प्रकाशित पुस्तकों में कौन सा उपहार दूँ प्रिय (हिंदी काव्य संग्रह), फगुआ के पहरा ( भोजपुरी काव्य संग्रह), कहनिया दुर्गा माई के (भोजपुरी प्रबंध काव्य), पहल (हिंदी काव्य संग्रह), नीक-जबून (भोजपुरी डायरी), गुनगुनाती शाम (समकालीन गीत-नवगीत संकलन ), कलसा भइले उजियार (भोजपुरी गीत संग्रह) शामिल हैं। वर्तमान में ये ‘संझवत’ (भाषा, साहित्य, संस्कृति और शोध की त्रैमासिक भोजपुरी पत्रिका) तथा ‘संसृति’ (हिंदी अनियतकालिक) का संपादन भी किया है।

साहित्य ही मनुष्य को मनुष्य बनाता
डॉ. मिश्र कहते हैं कि समय परिवर्तनशील है। पहले साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएं अधिक महत्वपूर्ण थीं परंतु वर्तमान सूचना परक/प्रतियोगिता से संबंधित पत्रिकाओं का है। वे कहते हैं कि नई पीढ़ी को समय निकालकर साहित्य पढऩा चाहिए क्योंकि साहित्य ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है।

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