बंद की राजनीति
कोलकाताPublished: Sep 29, 2018 06:04:21 pm
कोलकाता प्रसंगवश
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर बंद की राजनीति शुरू होती प्रतीत हो रही है। एक पखवाड़े के अंदर प्रदेश में दूसरी बार बंद बुलाया गया। पहले कांग्रेस तथा वामदलों ने बंद बुलाया था, फिर भाजपा ने १२ घंटे का बंगाल बंद बुलाया। ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव के म²ेनजर सभी पार्टियां अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाह रही है। कांग्रेस तथा वामदलों के बंद के दौरान न तो जनजीवन प्रभावित हुआ और न कहीं से हिंसा की खबरें मिली, पर भाजपा के बंद के दौरान एक बार फिर राज्य का असली चेहरा नजर आया। राज्य में कई जगह बंद समर्थकों ने हिंसा फैलाने की कोशिश की, एक जने की जान चली गई। कई जगह बसें फूंक दी गई। एक स्कूली बस पर पथराव की भी खबर है। कई जगह अराजकता का परिचय दिया गया। इससे आम लोगों को परेशानी उठानी पड़ी। प्रदेश भाजपा ने इस्लामपुर में कथित पुलिस फायरिंग में दो छात्रों की मौत के खिलाफ तथा मामले की सीबीआई जांच को लेकर बंद बुलाया था। इस बंद से क्या हासिल हुआ यह तो प्रदेश भाजपा नेता ही बता सकते हैं। इसमें दोराय नहीं है कि इस्लामपुर में मारे गए दो छात्रों के परिजनों को इंसाफ मिलना चाहिए, पर ऐसे मसलों पर बंद बुलाकर कहीं जबरन दुकानें बंद कराना तो कहीं वाहनों को फूंक डालना तो कहीं ट्रेनें रोक देना तो कहीं स्कूली बस पर पथराव को कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
पहले खासकर तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने से पहले राज्य में बात-बात पर बंद बुलाया जाता था। अगर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष की बातों पर यकीन करे तो तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने अब तक 73 बार बंगाल बंद बुलाया है। अगर यह आंकड़ा सही है तो किसी भी राज्य तथा बंद बुलाने वाली पार्टी के लिए कोई बड़ी उपलब्धि नहीं, बल्कि एक तरह से शर्मनाक आंकड़ा है। सभी को मालूम है कि बंद उपद्रव के पर्याय बन गए हैं। बंद के दौरान राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर कर अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हैं। ऐसा लगता है कि उस दिन उन्हें उपद्रव करने का लाइसेंस मिल जाता है, उनके मन में जो भी आए कर गुजरते हैं। ऐसे में यह कहा जाए कि राजनीतिक दलों के नेता बंद बुलाकर खुद को जनता का हितैषी साबित करने का दिखावा करते हैं, तो कुछ भी गलत नहीं है। एक तरह से भाजपा समर्थकों ने बंद के दौरान वही किया, जो वाममोर्चा के शासनकाल में तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने किया था। हिंसा, आगजनी, तोडफ़ोड़ के जरिए जनता में भय का माहौल पैदा किया गया। पार्टी ने शक्तिप्रदर्शन किया, जोकि लोकतंत्र में इस तरह शक्ति प्रदर्शन का कोई स्थान नहीं है। अगर राजनीतिक दलों को वास्तव में आम आदमी की चिंता है तो उन्हें बंद बुलाने से बाज आना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट को स्वत: ऐसे बंद पर संज्ञान लेना चाहिए। राज्य की जनता को बंद की राजनीति से दूर रहना चाहिए। बंद से किसी को कुछ भी हासिल नहीं होता।