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कोलकाता

दीर्घकालिक फायदे की उम्मीद, समस्याएं भी बरकरार

जीएसटी का एक साल:
गार्मेन्ट उद्योगों को होने वाली है नई समस्या

कोलकाताJul 03, 2018 / 08:38 pm

MANOJ KUMAR SINGH

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दीर्घकालिक फायदे की उम्मीद, समस्याएं भी बरकरार

विकट हालात से गुजर रहा रियल एस्टेट

नोटबंदी और रियल एस्टेट रेग्युलेटरी एक्ट (रेरा) के बाद रियल एस्टेट जीएसटी से उत्पन्न समस्याओं से घिरा

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देश में नई कर व्यवस्था वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लागू किए जाने के बाद से ही विशेषज्ञों ने इसके सुचारू होने की उम्मीद लगा रखी है। इसके लागू हुए एक साल पूरे होने के बाद उद्योग जगत विशेषकर छोटे उद्योगपतियों और व्यवसायियों में इससे दीर्घकालिक लाभ होने की उम्मीदें है। हालांकि इसे लेकर समस्याएं भी बरकरार हैं।
गत साल एक जुलाई से जीएसटी लागू किए जाने के साथ इसकी छोटी-बड़ी त्रुटियों और कमियों ने विभिन्न क्षेत्रों के उद्योग और व्यवसाय की मुश्किलें बढ़ गई। जीएसटी रिटर्न सहित अन्य समस्याओं ने छोटे उद्योग और धंधों की कमर तोड़ दी। जीएसटी से सबसे अधिक रियल एस्टेट, गार्मेन्ट और निर्यात क्षेत्र की नई परेशानियां शुरू हुई। उक्त क्षेत्र के लोगों को इससे दीर्घकालिक लाभ होने की उम्मीद है। नोटबंदी और रियल एस्टेट रेग्युलेटरी एक्ट (रेरा) के बाद रियल एस्टेट जीएसटी से उत्पन्न समस्याओं से घिरा है। इससे दूरगामी लाभ होने की उम्मीद रखने वाले रियल स्टेट क्षेत्र के उद्योगपतियों ने जीएसटी को भारतीय इतिहास में इसे अति उग्र कर सुधार करार दिया। अभी तक इसके लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंच रहा है, लेकिन अधिकतर को इसका भविष्य उज्ज्वल होने की उम्मीद है।
रियल इस्टेट की सबसे बड़ी समस्या निर्माणाधीन परियोजनाओं के पिछले 5 प्रतिशत सेवा कर के मुकाबले सबसे अधिक 18 प्रतिशत कर देना है। हालांकि जमीन पर एक तिहाई छूट देने से यह 12 प्रतिशत हो गया है।
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पोद्दार ने खामियां गिनाईं

हैप्पी समूह के चेयरमैन सुशील पोद्दार ने पत्रिका को बताया कि सबसे अधिक समस्याएं रियल इस्टेट की मध्यम और लक्जरी वर्ग की निर्माणाधीन परियोजनाएं को ले कर हो रही हैं। कोई भी परियोजना लागत का 12 प्रतिशत कर नहीं देना चाहता है। इस लिए परियोजना शुरू करने से पहले लोगों ने कॉम्प्लेक्स या फ्लैट बन कर तैयार होने का सर्टिफिकेट या उसे अपने कब्जा में लेने का सर्टिफिकेट लेने का इंतजार करना शुरू कर दिया है। इमारत बन कर तैयार होने के बाद उस पर जीएसटी लागू नहीं होता है। इस लिए ग्राहक कर भुगतान देने से बचने के लिए फ्लैट बन कर तैयार होने के सर्टीफिकेट का इंतजार करते हैं। उनके अनुसार जमीन पर एक तिहाई छूट ठीक नहीं है। जमीन पर कम से कम 50 प्रतिशत छूट दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा प्रमोटर की ओर से ग्राहकों को दी जाने वाली छूट का स्वरूप निर्धारित नहीं है।
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अब उतनी समस्या नहीं-वैद्य

जीएसटी में त्रुटियों और कमियों की मार गार्मेन्ट उद्योग भी झेल रहा है। पश्चिम बंगाल गार्मेन्ट मनुफैक्चरर्स एसोसिएशन के महासचिव और कंपनी वेलफिट इंटरनेशनल के एमडी देवेन्द्र वैद्य ने कहा कि जीएसटी रिटर्न को ले कर अब समस्या उतनी नहीं है। लेकिन जॉब वर्क पर जीएसटी लागू होने जा रहा है। इससे बहुत परेशानी होगी। कोलकाता में इन हाउस गार्मेन्ट निर्माण करने की सुविधा नहीं है। इसके लिए जितनी जगह चाहिए उतनी नहीं है। इस लिए आठ जगह जॉब वर्क करवाया पड़ता है। अब इस पर भी जीएसटी लगेगा। इस कारण जहां-जहां जॉब वर्क करवाया जाता है, वहां- वहां अब वे-बिल देने पड़ेगा। इसे ले कर एक और नई परेशानी होगी। लेकिन तमिलनाडु में जॉब वर्क के लिए वे-बिल नहीं देना पड़ता है। जीएसटी का नकारात्मक प्रभाव निर्यात पर भी पड़ा है।
कर दर बहुत अधिक- चोपड़ा
पीएस समूह रियल्टी लिमिटेड के चैयरमैन प्रदीप चोपड़ा ने कहा कि कर दर बहुत अधिक है। अधिक कर दर ने निवेशकों और ग्राहकों के लिए समस्याएं पैदा की। रियल इस्टेट की दूसरी समस्या जमीन पर कम छूट है। जमीन पर जीएसटी नहीं होने के कारण सरकार परियोजना के 18 प्रतिशत कर की एक तिहायी रियायत दे रही है। रियायत मिल रही है, लेकिन अनुपात बहुत कम है। इस लिए फ्लैट निर्माण करना बहुत महंगा पड़ रहा है और फ्लैट की बिक्री कम हो रही है।
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समस्या ज्यों की त्यों-कोठारी

कोलकाता में अगली कतार के निर्यातकों में शुमार सीकेसी फे्रगरेंसेस के ऋषव सी. कोठारी ने कहा कि जीएसटी के लागू हुए एक साल हो गया। लेकिन समस्या समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। इस कारण आर्थिक नुकसान हो रहा है। हमारे लिए जीएसटी रिफड में विलम्ब होने और वर्किंग कैपिटल को ले कर बड़ी समस्या हो रही है। जीएसटी की शर्तों सूरतों को लेकर स्थिति अब भी साफ नहीं है। एक्सचेन्ज रेट और जीएसटी के साफ्टवेयर को लेकर भी बड़ी समस्याएं हो रही हैं। इन सब के कारण कारोबार में लागत बढ़ रही है।

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