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कोलकाता

शरद पूर्णिमा पर आज लगेगा ठाकुरजी को खीर का भोग

धार्मिक ही नहीं, शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व भी- कार्तिक मास 25 से-बंगाल में शरद पूर्णिमा को कहते हैं कोजागोरी लक्ष्मी पूजा

कोलकाताOct 23, 2018 / 10:31 pm

Shishir Sharan Rahi

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शरद पूर्णिमा पर आज लगेगा ठाकुरजी को खीर का भोग

कोलकाता. आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है, जो इस साल यह 24 अक्टूबर को है। कार्तिक मास 25 अक्टूबर से शुरू होगा, जबकि शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। आश्विन शुक्ल मास की पूर्णिमा (24अक्टूबर) से ही सुबह-शाम और रात को सर्दी का अहसास होने के कारण ही इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन ठाकुरजी को खीर का भोग लगाकर भक्तों में वितरित किया जाएगा। वैसे तो हर माह ही पूर्णिमा होती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व अलग है। शरद पूर्णिमा का धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक महत्व भी है। यूं तो हर पूर्णिमा पर चांद गोल नजर आता है, पर शरद पूर्णिमा की चांद की बात कुछ और है। इस दिन चांद की किरणें धरती पर अमृतवर्षा करती हैं। हिंदू पुराणों के अनुसार शरद पूर्णिंमा की रात को चांद 16 कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है, जो सेहत के लिए काफी लाभदायक है। हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल केवल इसी रात में खिलता है। इसी दिन वैद्य अपनी जडी-बूटी और औषधियां इसी दिन चांद की रोशनी में बनाते हैं, ताकि यह रोगियों को दुगुना फायदा दें। प्रत्येक प्रांत में शरद पूर्णिमा का अलग-अलग महत्व है। वैसे तो विभिन्न स्थानों पर विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा होती है, पर अधिकतर स्थानों में किसी न किसी रूप में लक्ष्मी की पूजा अवश्य होती है। बंगाल में शरद पूर्णिमा को कोजागोरी लक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में इसे कोजागरी पूजा, तो गुजरात में शरद पूनम। इसे कोजागरी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। किसी-किसी स्थान पर व्रत को कौमुदी पूर्णिमा भी कहते हैं। कौमुदी का अर्थ है चांद की रोशनी। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को ही कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था।
-शरद पूर्णिमा का चिकित्सकीय महत्व

इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है, इसलिए शरीर और मन दोनों को यह शीतलता प्रदान करता है। शरद पूर्णिमा का चिकित्सकीय महत्व भी है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहतर माना जाता है। शरद पूर्णिमा से मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात खीर का सेवन इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी। शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत टपकता है, जो सेहत के लिए लाभकारी है। इस दिन घरों की छत पर खीर बना कर रखने का रिवाज है, जिससे चांद की किरणें खीर पर पड़े और वह अमृतमयी हो जाए। इस खीर के सेवन से नेत्र रोग जैसे गंभीर रोगों से निजात मिलती है। कहीं-कहीं इस दिन सार्वजनिक रूप से खीर वितरित भी की जाती है। शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात खीर खुले आसमान में रखने की परंपरा विकसित की थी, जो धार्मिक होने सहित विज्ञान पर आधारित है। क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है और इससे विषाणु दूर रहते हैं इसलिए खीर को चांदी के पात्र में बनाने पर जोर दिया गया था
शरद पूर्णिमा के दिन ही प्रकट हुई थीं लक्ष्मी

पं. दामोदर मिश्रा ने बताया कि समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा के दिन ही लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है। यह दिन लक्ष्मी का जन्मदिन है और इसी दिन से कार्तिक के नारायण महीने की शुरुआत होती है। उन्होंने कहा कि 22 बजकर 01 मिनट पर शरद पूर्णिमा आएगा और इसकी अवधि 22 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। चूंकि मंगलवार को सूर्यास्त 05.05 मिनट पर हुआ, इसलिए बुधवार को ही शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी।

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