-शरद पूर्णिमा का चिकित्सकीय महत्व इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है, इसलिए शरीर और मन दोनों को यह शीतलता प्रदान करता है। शरद पूर्णिमा का चिकित्सकीय महत्व भी है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहतर माना जाता है। शरद पूर्णिमा से मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात खीर का सेवन इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी। शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत टपकता है, जो सेहत के लिए लाभकारी है। इस दिन घरों की छत पर खीर बना कर रखने का रिवाज है, जिससे चांद की किरणें खीर पर पड़े और वह अमृतमयी हो जाए। इस खीर के सेवन से नेत्र रोग जैसे गंभीर रोगों से निजात मिलती है। कहीं-कहीं इस दिन सार्वजनिक रूप से खीर वितरित भी की जाती है। शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात खीर खुले आसमान में रखने की परंपरा विकसित की थी, जो धार्मिक होने सहित विज्ञान पर आधारित है। क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है और इससे विषाणु दूर रहते हैं इसलिए खीर को चांदी के पात्र में बनाने पर जोर दिया गया था
शरद पूर्णिमा के दिन ही प्रकट हुई थीं लक्ष्मी पं. दामोदर मिश्रा ने बताया कि समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा के दिन ही लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है। यह दिन लक्ष्मी का जन्मदिन है और इसी दिन से कार्तिक के नारायण महीने की शुरुआत होती है। उन्होंने कहा कि 22 बजकर 01 मिनट पर शरद पूर्णिमा आएगा और इसकी अवधि 22 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। चूंकि मंगलवार को सूर्यास्त 05.05 मिनट पर हुआ, इसलिए बुधवार को ही शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी।