विधानसभा की चली आ रही परंपरा के अनुसार तृणमूल कांग्रेस ने विधानसभा में मुख्य विरोधी पार्टी भाजपा को यह पद देने का फैसला किया था। अब खबर है कि उसने अपना इरादा बदल दिया है और इस पद पर मुकुल रॉय को बैठाने की कोशिश में है। रॉय ने भाजपा छोडऩे के बावजूद विधायक पद से अब तक इस्तीफा नहीं दिया है। यानी आधिकारिक तौर पर वे अभी भी भाजपा के ही विधायक हैं।
पिछली बार तृणमूल कांग्रेस ने ऐसे ही कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में आए मानस भुईंया को पीएसी का चेयरमैन बनाया था। उन्होंने कांग्रेस तो छोड़ दी थी, लेकिन कांग्रेस विधायक दल से इस्तीफा नहीं दिया था।
जानकारों का कहना है कि तृणमूल की तरफ से इस पद के लिए मुकुल का नाम प्रस्तावित किए जाने पर यह पूरी तरह से विधानसभा अध्यक्ष पर निर्भर करेगा कि वे इसे मंजूर करते हैं या नहीं।
कुछ जानकारों का कहना है कि यह पद विरोधी दल के किसी विधायक को ही सौंपना चाहिए। हालांकि कानूनी तौर पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। इसलिए सीधे तौर पर मुकुल के पीएसी का चेयरमैन बनने में कोई परेशानी नहीं हो सकती है।
विपक्ष ने मांगे थे 14 कमेटियों के अध्यक्ष- विधानसभा सूत्रों ने बताया कि कुछ दिन पहले तृणमूल कांग्रेस और भाजपा विधायक दल के प्रतिनिधियों की बैठक हुई थी। जिसमें तृणमूल कांग्रेस बंगाल विधानसभा की कुल 41 कमेटियों में से 10 कमेटियों के चेयरमैन पद विपक्ष को देने को राजी हुई थी।
इनमें पीएसी का चेयरमैन पद भी शामिल था, जबकि भाजपा ने 14 कमेटियों के चेयरमैन पद की मांग की थी। अब तृणमूल का रुख बदला नजर आ रहा है और वह यह पद भाजपा को देने को तैयार नहीं है।
राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री पार्थ चटर्जी से इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि इस बारे में विधानसभा अध्यक्ष ही निर्णय लेंगे।
भाजपा कर सकती है सदस्यता रद्द करने का आग्रह
मुकुल को इस पद पर आसीन होने से रोकने के लिए भाजपा जल्द ही विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी से आग्रह कर सकती है।
भाजपा कर सकती है सदस्यता रद्द करने का आग्रह
मुकुल को इस पद पर आसीन होने से रोकने के लिए भाजपा जल्द ही विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी से आग्रह कर सकती है।
इसपर तृणमूल के एक नेता ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए दो सांसदों सुनील मंडल व शिशिर अधिकारी की लोकसभा सदस्यता अब तक खारिज नहीं की गई है।
तृणमूल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इस बारे में कई बार आवेदन किया है। जब लोकसभा में मामला लंबित रह सकता है तो विधानसभा में क्यों नहीं? अब सब कुछ विधानसभा अध्यक्ष पर ही निर्भर करेगा।