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कोलकाता

CORONA EFFECT: क्वारन्टीन में रहने के तमाम सरकारी दावों की खुली पोल

मालदा जिले में महानंदा किनारे प्लास्टिक तम्बू में रहने पर मजबूर प्रवासी श्रमिक , हाल ही मध्य प्रदेश से लौटे हैं 11 प्रवासी श्रमिक

कोलकाताMay 31, 2020 / 06:20 pm

Shishir Sharan Rahi

CORONA EFFECT:    क्वारन्टीन में रहने के तमाम सरकारी दावों की खुली पोल

CORONA EFFECT: क्वारन्टीन में रहने के तमाम सरकारी दावों की खुली पोल

BENGAL CORONA ALERT: कोलकाता. पूरी दुनिया में कहर बरपाने वाले महामारी कोरोना वायरस नोवेल कोविड 19 व तालाबंदी में क्वारन्टीन में रहने संबंधी सुविधाओं के तमाम सरकारी दावे हवा हवाई हैं। इसका जीता जागता उदाहरण पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में महानंदा नदी किनारे प्लास्टिक के तंबू में क्वारन्टीन में रह रहे प्रवासी श्रमिक हैं। मालदा जिले में कोरोना के कहर के बीच इन प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों में घुसने नहीं दिया जा रहा। हाल ही मध्य प्रदेश से लौटे 11 प्रवासी श्रमिकों को मजबूर होकर गांव से कुछ दूर महानंदा नदी किनारे प्लास्टिक के तंबू में क्वारन्टीन में रहना पड़ रहा। जहां उन्हें भोजन, पानी समेत मौसम के लगातार बदलते मिजाज का भी सामना करना पड़ रहा। कभी बरसात, धूप, तेज गर्मी तो कभी तेज हवा ने इनका जीना बेहाल कर रखा है। मालदा शहर के वार्ड 12 के अरविंद कॉलोनी इलाके की इस घटना ने क्वारन्टीन में रहने के तमाम सरकारी दावों की पोल खोल कर रख दी है। कोरोना वायरस नोवेल कोविड 19 के संक्रमण रोकने समेत तालाबंदी व क्वारन्टीन में रहने संबंधी केन्द्र-राज्य सरकार की अव्यवस्था का यह आलम है। मध्य प्रदेश से घर लौटे 11 प्रवासी श्रमिक वहां नदी किनारे क्वारन्टीन में समय गुुजार रहे हैं। इस दौरान एक तरफ जहां उन्हें खाने-पीने की दिक्कतें हो रही वहीं दूसरी ओर मौसम की मार भी झेलनी पड़ रही है। इनका कहना है कि दूसरे प्रदेश से आने के कारण इलाके के लोग उन्हें उनके घर तक नहीं जाने दे रहे। करीब 3 माह पहले ये सभी काम के सिलसिले में मध्य प्रदेश गए थे। कोरोना से बचने के लिए अचानक लागू लॉकडाउन के चलते वे वहीं फंस गए। हाल ही कुछ दिनों पहले ट्रक और अन्य छोटे वाहनों से जैसे-तैसे ये लोग मालदा अपने घर आए। लेकिन आने के बाद उन्हें यहां अलग ही नजारा देखने को मिला। कोरोना के डर से ग्रामीणों ने सडक़ पर बांस के बैरिकेड लगाकर बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी। मजबूरन उन्हें गांव के अंदर घुसने नहीं दिया गया। और आखिरकार महानंदा नदी के किनारे प्लास्टिक का तंबू लगाकर किसी तरह क्वारन्टीन में समय गुजारना पड़ रहा है।

3 माह से भी अधिक समय से परिजनों का चेहरा तक नहीं देखा
प्लास्टिक तंबू में रहने वाले श्रमिक विकी सरकार ने बताया कि 3 माह से भी अधिक समय से उसने अपने परिजनों का चेहरा तक नहीं देखा। न तो उसकी पत्नी के साथ बातचीत हो पा रही और न ही बेटे-बेटी से मुलाकात। उसने कहा कि बहुत मुश्किल से मध्य प्रदेश से वे सभी मालदा आए। उनके पास सभी आवश्यक कागजात होने के बावजूद न गांव में घुसने दिया जा रहा और न घरवालों से मिलने दिया जा रहा है। इतना ही नहीं घरवालों को उनके समीप भोजन तक नहीं लाले दिया जा रहा है। इन श्रमिकों ने कहा कि तंबू कभी हवा में उड़ जाता है तो कभी आंधी, बरसात उनकी परेशानी बढ़ा देती है। वे एक स्थान से दूसरी जगह भागे-भागे फिर रहे। संकट की इस घड़ी में पड़ोसियों ने मुंह फेर लिया। पूर्व पार्षद और प्रशासक भी उनकी कोई सुध नहीं ले रहे हैं। इंग्लिशबाजार नगरपालिका के मुख्य प्रशासक निहार घोष ने इस संबंध में बताया कि सभी प्रवासी श्रमिकों को क्वारन्टीन सेंटर में भेजने की आवश्यकता थी। उन्हें संबंधित पार्षद ने कुछ नहीं बताया। उन्होंने कहा कि तंबू में रह रहे सभी प्रवासी श्रमिकों को क्वारन्टीन सेंटर में भेजने के बारे में विचार किया जा रहा।

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