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कोलकाता

WEST BENGAL—-पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवाड़ा पितृपक्ष

आज से शुरू समापन 6 को, दो दिन पंचमी तिथि होने से इस बार 17 दिन का श्राद्ध पक्ष, पंडितों के अनुसार श्राद्धपक्ष का बढऩा शुभ नहीं, पत्रिका सामाजिक सरोकार

कोलकाताSep 19, 2021 / 11:31 pm

Shishir Sharan Rahi

WEST BENGAL----पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवाड़ा पितृपक्ष

WEST BENGAL—-पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवाड़ा पितृपक्ष

BENGAL NEWS-कोलकाता। कोविड संक्रमण काल में पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवाड़ा पितृपक्ष सोमवार से शुरू होगा। पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर दान-धर्म करने की परंपरा है। पितृपक्ष का हिंदू धर्म में खास महत्व है। पंचतत्व में विलीन अपने पुरखों की आत्मा के मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण अर्पण करने वाले पितृपक्ष के तहत सोमवार पूर्णिमा की तिथि को पहला श्राद्ध पड़ेगा। इस साल पितृपक्ष का समापन पंचांग अनुसार 6 अक्टूबर को अमावस्या श्राद्ध या सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा। तिथि के बढऩे के कारण इस वर्ष श्राद्धपक्ष 17 दिनों का रहेगा। श्राद्धपक्ष का बढऩा शुभ नहीं है। बड़ाबाजार के ढाकापट्टी स्थित श्रीपंचदेव मंदिर के पुजारी प्रवासी राजस्थानी पं. त्रिलोकीनाथ ने रविवार को पत्रिका से बातचीत में यह बात कही। उन्होंने कहा कि श्राद्धपक्ष का बढऩा शुभ नहीं माना जाता।
—–जब-जब श्राद्धपक्ष बढता है तब-तब होती है हानि
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इसका आम जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कोई पहली दफा श्राद्धपक्ष 17 दिनों का नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है। उन्होंने कहा कि जब-जब श्राद्धपक्ष बढता है तब-तब हानि होती है। जबकि इसके ठीक विपरित नवरात्र का बढऩा शुभ होता है। श्राद्धपक्ष में 17 दिनों से इस बार कर्मकांड तो अधिक होंगे पर ये शुभ नहीं माने जा सकते। जिनके पितरों का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि को होता है वे पूर्णिमा श्राद्ध के दिन पिंडदान, तर्पण आदि कर सकते हैं। पितृपक्ष में पितरों की मुक्ति के लिए दान और धर्म किए जाते हैं। भाद्रपद माह पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक का समय पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष कहलाता है।
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श्राद्ध का मतलब श्रद्धापूर्वक पितरों को प्रसन्न करने से
एक अन्य ज्योतिषाचार्य पं. मनोज शास्त्री का कहना है कि श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है। हिंदू धर्म में श्राद्ध पर्व का विशेष महत्व है। पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर दान धर्म करने की परंपरा है। पितरों की मुक्ति के लिए कर्म किये जाते हैं। एक पक्ष तक चलने वाले इस श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण विधि-विधान से किया जाता है। श्राद्ध पक्ष का समापन सर्व पितृ अमावस्या के दिन (जिसे महालया भी कहते हैं) 6 अक्टूबर को होगा। श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शस्त्र से, दुर्घटना में, अकाल मृत्यु से मृतकों का श्राद्ध करना चाहिए। भले ही उनकी मृत्युतिथि कोई और हो। सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन सभी मृतकों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि के बारे में जानकारी न हो। इस दिन अपने जाने-अनजाने सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।…..………..

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