उन्होंने कहा कि धार्मिक उत्पीडऩ के कारण बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भाग कर आए वहां के अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दिए जाने की बात सुन कर बहुत अच्छा लगता है। यह बहुत ही अच्छा विचार और उदार है लेकिन मुस्लिम समाज से उन जैसे भी मुक्त विचारक और नास्तिक लोग हैं, जिन्हें भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सताया गया है, उन्हें भी भारत में रहने का अधिकार होना चाहिए। पड़ोसी देश के उन जैसे मुक्त-विचारक मुस्लिम, नारीवादियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों के लिए इस कानून को अपवाद बनाया जाना चाहिए।
नसरीन केरल लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन इन एग्ज़ाइल: ए राइटर्स जर्नी नामक सत्र को संबोधित कर रही थीं। इस दौरान उन्होंने बांग्लादेश के मुस्लिम नास्तिक ब्लॉगर्स का उदाहरण दिया, जिन्हें कुछ साल पहले बांग्लालेश के संदिग्ध इस्लामिक आतंकियों ने काट दिया था।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई ब्लॉगर्स, अपना जीवन बचाने के लिए, यूरोप या अमरीका भाग कर जा रहे हैं। वे भारत क्यों नहीं आ सकते हैं? भारत को आज मुस्लिम समुदाय के स्वतंत्र विचारक, धर्मनिरपेक्षतावादी, नारीवादी की बहुत जरूरत है। उन्होंने कहा कि आगामी अप्रेल में उनकी नई पुस्तक शेमलेस प्रकाशित होगी, जो उनकी सर्वश्रेष्ठ पुस्तक लज्जा की अगली कड़ी है। नसरीन को 1994 में अपने इस्लाम विरोधी विचारों के लिए कट्टरपंथी संगठनों की ओर से उन्हें जान से मारने का फतवा जारी करने पर उन्हें बांग्लादेश छोडऩा पड़ा। तब से वह निर्वासन में रह रही हैं।
57 वर्षीय नसरीन ने कहा कि कट्टरवाद बहुसंख्यक समुदाय से हो या अल्पसंख्यक समुदाय से दोनों ही बहुत ही खतरनाक होते हैं। इसकी निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सीएए का विरोध करने वाले ये मुस्लिम कट्टरपंथी क्या धर्मनिरपेक्ष हैं? क्या वे धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं? नहीं ये सभी धर्मनिर्पेक्ष नहीं है। इसलिए सीएए के विरोध करने वालों मुस्लिम को बाहर कर देना चाहिए। अल्पसंख्यक समुदाय और बहुसंख्यक समुदाय के कट्टरपंथी समान हैं क्योंकि वे दोनों प्रगतिशील समाज और महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि अभी भारत में जो हो रहा है वो नया नहीं है और न ही यह हिन्दू और मुस्लिम के बीच की लड़ाई है।