मुकेश कहते हैं कि उद्यमी सरकार को कर देते हैं लेकिन जब उनके उद्योग-व्यवसाय बंद हो जाते हैं तो उनके लिए सरकार की कोई सामाजिक सुरक्षा स्कीम नहीं है। सरकार को उद्यमियों को सामाजिक सुरक्षा देनी चाहिए। वे कहते हैं कि हर युग में उद्योग-व्यवसाय की कुछ चुनौतियां रहती हैं। इस आर्थिक मंदी के दौर में तरलता की कमी और बैंक के कड़े नियमों की मार के साथ निजी कंपनियों के कम निवेश सबसे बड़ी चुनौती है। उद्यमी दूसरों को रोजगार देते हैं और आर्थिक विकास में योगदान करते हैं, लेकिन उन्हें सम्मान नहीं मिलता। वे निवेश करने से डर रहे हैं। उनके प्रति समाज की गलत धारणा है। सरकार भी व्यवसायियों के खिलाफ जागो ग्राहक जागो विज्ञापन दिखाती हैं लेकिन पुलिस, डॉक्टरों और राजनेताओं के खिलाफ ऐसा विज्ञापन नहीं दिखाया जाता है। सरकार और समाज को उद्यमियों के प्रति अपनी मानसिकता बदलना जरूरी है।
वे कहते हैं कि मंदी गंदगी साफ करने के लिए कड़े आर्थिक सुधार का नतीजा है, जो अस्थाई है। लम्बे समय में इससे देश के आर्थिक विकास की गति तेज होगी।
बजट में व्यक्तिगत आयकर कम करने और बाजार में तरलता बढ़ाने के लिए कदम उठाने की उम्मीद है। आयकर में छूट देने से लोग खर्च करेंगे और बाजार की स्थिति सुधरेगी। जीएसटी में सुधार होने की उम्मीद है। एक देश एक जीएसटी नंबर होना चाहिए।
भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता कोई देश