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कोरबा

उइके का पार्टी में प्रवेश कराके पाली तानाखार में भाजपा ने चुकता किया 41 साल पुराना हिसाब

विधानसभा सीट क्रमांक 23 पर शुरू से रहा है दलबदलुओं का प्रभाव

कोरबाOct 13, 2018 / 01:42 pm

JYANT KUMAR SINGH

विधानसभा सीट क्रमांक 23 पर शुरू से रहा है दलबदलुओं का प्रभाव

विधानसभा सीट क्रमांक 23 पर शुरू से रहा है दलबदलुओं का प्रभाव

कोरबा. पाली तानाखार सीट भाजपा की एक ऐसी सीट है जहां वो हमेशा पिछड़ते तो रही साथ ही उसके नेता हर बार कांग्रेस से हाथ मिलाते रहे हैं। भाजपा ने रामदयाल उइके को अपने पाले में लाकर 41 साल पुराने प्रतिशोध को पूरा कर लिया है।
1977 के चुनाव में पाली तानाखार से जनता पार्टी के प्रत्याशी विशाल सिंह ने जीत दर्ज की। लेकिन जीतने के ढाई साल बाद ही वे कांग्रेस के पाले में चले गए। इसके तीन साल बाद 1980 में भाजपा ने मनराखन सिंह मरकाम को चुनाव में उतारा। भले मरकाम जीतने में कामयाब तो नहीं रहे,
लेकिन वोट बैंक से अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। तीन साल बाद मरकाम भी कांग्रेस में चले गए। इसके बाद भाजपा ने आदिवासी बड़े चेहरे हीरा सिंह मरकाम को 1985 में उतारा था। चार साल बाद लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर मरकाम ने खुद की नई पार्टी गोड़वाना गणतंत्र पार्टी बना ली। फिर 1990 में भाजपा ने अमोल सिंह सलाम को टिकट दिया। और भाजपा ने काफी साल बाद पाली से जीत का स्वाद चखा।
लेकिन अमोल सिंह भी ढाई साल बाद कांग्रेस में प्रवेश कर गए। यही हाल 1993 के चुनाव में हुआ। प्रत्याशी विशाल सिंह ने हारने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया। इस तरह कांग्रेस ने पाली तानाखार सीट को लेकर भाजपा से हर बार एक कदम आगे ही रही। अब जाकर उइके को भाजपा ने अपने पाले में लाकर हिसाब बराबर कर लिया।
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पटवारी पद छोड़ उइके जीते थे मरवाही से पहला चुनाव
मरवाही के डोकरमुढ़ा के निवासी रामदयाल उइके ने पटवारी से त्याग पत्र देकर बीजेपी से चुनाव लड़ा था। मरवाही में 1998 में जीतने के बाद उइके और अजीत जोगी के बीच करीबी बढ़ी। उइके ने बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद उइके ने मरवाही सीट अजीत जोगी के लिए छोड़ दी। सीएम बनने के बाद जोगी ने उइके को एससी-एसटी आयोग का अध्यक्ष बना दिया।

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दलबदल रहा है पाली तानाखार का इतिहास
पाली तानाखार का इतिहास दलबदलू रहा है। 1977 से लेकर 1980 का चुनाव हो या फिर 1990 या फिर 1993 का विधानसभा चुनाव । प्रत्याशी भले हारा हो या फिर जीता हो। कांग्रेस का दामन हर बार था। उइके 2003 से कांग्रेस से जीत रहे थे। यहां तक की पिछले बार के भाजपा प्रत्याशी श्यामलाल मरावी भी एक समय तक उइके के समर्थक रहे हैं।

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