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कोरबा

बीच सेशन में DEO के नए प्रयोग से फैला Confusion, प्राचार्य सिर पकड़कर बैठे यह है पूरे उलझन की वजह

मामला हजारों बच्चों के भविष्य का

कोरबाOct 17, 2018 / 10:37 am

Shiv Singh

मामला हजारों बच्चों के भविष्य का

मामला हजारों बच्चों के भविष्य का

कोरबा. विज्ञान भी कहता है कि प्रयोग के पहले आपके पास आवश्यक संसाधन व तथ्यों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि मामला हजारों बच्चों के भविष्य का हो तो कदम फूंक-फूंक कर ही रखा जाना चाहिए।
लेकिन शिक्षा विभाग फिलहाल इसके उलट चलता दिख रहा है। ऐसा कभी-कभार ही होता है कि हवा में सेव गिरे और गुरुत्वाकर्षण की खोज हो जाए वरना अधिकांश प्रयोग के नतीजे वर्षों के कड़े श्रम व बेहतर कार्य योजना के बाद ही आते हैं। जिले के सरकारी स्कूलों के टाइम टेबल के साथ बीच सेशन में किया गया नया प्रयोग फिलहाल फेल होता दिख रहा है। आलम यह है कि नया टाइम टेबल के लागू होने के बाद इसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं।

हलांकि निर्देश के बाद कई प्राचार्यों ने नया टाइम टेबल लागू तो किया लेकिन व्यवहारिक दिक्कतों के बाद पुरानी व्यवस्था पर लौट आए हैं। जबकि ऐसे प्राचार्यों की संख्या भी कम नहीं है, जहां व्याख्याताओं के विरोध के बाद नया टाइम टेबल लागू ही नहीं किया गया है। अपनी पदस्थापना के बाद डीईओ सतीश पाण्डेय ने जिले के सभी हाई व हायर सेकेंडरी के प्राचार्यों की बैठक लेकर उन्हें नए टाइम टेबल को तत्काल स्कूलों में लागू करने को कहा।
हालांकि कोई लिखित आदेश जारी नहीं किया गया है। लेकिन इस मौखिक निर्देश के तहत 45 मिनट के स्थान पर अब स्कूलों में विषयों के एक-एक घण्टे के तीन पीरियड होंगे। केवल इसमें ही पढाई होगी जबकि 50-50 मिनट के दो अन्य पीरियड्स में लेखन अभ्यास और अंत में छात्रों के बौद्धिक विकास के लिए अंतर्निहित गुणों के विकास का पीरियड होगा।

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अब तो तीन शिक्षक पढ़ाएंगे और तीन बैठे रहेंगे
नए टाइम टेबल के विषय में पत्रिका ने जिले के कई सरकारी स्कूलों के प्राचार्यों से चर्चा की। ज्यादातर इससे असंतुष्ट दिखे। हाई स्कूल के प्राचार्यों ने इस बात को स्वीकार किया कि एक दिन में केवल तीन ही विषयों का अध्यापन कराने के कारण शेष तीन विषयों के शिक्षक अध्यापन नहीं करा पाते। जबकि हायर सेकेंडरी के ऐसे प्राचार्य जहां एक कक्षा में दो या तीन सेक्शन हैं, वह नए टाइम टेबल को अव्यवहारिक बता रहे हैं। उदाहरण के लिए यदि गणित विषय के किसी स्कूल में तीन सेक्शन हैं, लेकिन शिक्षक केवल एक ही है, तो ऐसी परिस्थिति में एक समय में वह एक ही क्लास में मौजूद रह सकता है।


बीच सेशन में प्रयोग से शिक्षक हो रहे हताश
नाम नहीं बताने की शर्त पर कई शिक्षकों ने बताया कि बीच सेशन में ऐसे प्रयोग से स्कूलों की व्यवस्था पर असर पड़ा है। उनका कहना है कि ऐसा प्रयोग करना ही था तो शुरुआत से ही सभी नियम लागू किए जाने चाहिए थे। व्यवहारिक दिक्कतों को समझे बिना ही नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। अध्यापन कार्य एक दिन बाद मिलता है। इससे पढाने की रफ्तार कम हो जाती है।


इस तरह चलती थी पुरानी व्यवस्था
पूर्व में जिले के स्कूलों में लेखन अभ्यास का कोई भी पृथक पीरियड नहीं था। इसके अलावा अंतर्निहित गुणों के विकास का भी कोई पीरियड नहीं था। पूर्व में सभी पीरियड 45-45 मिनटों के होते थे। जोकि राज्य शासन के मापदण्डों के अनूरूप थे। हालांकि लेखन के अभ्यास से बच्चों को फायदा होने की बात शिक्षक स्वीकर कर रहे हैं।


विकास पीरियड में भी करा रहे अध्यापन
डीईओ ने छात्रों के बौद्धिक विकास के लिए अंतिम पीरियड अंतर्निहित गुणों के विकास का रखवाया है। जिसमें खेल कूद से लेकर, सांस्कृति कार्यक्रम व बच्चों की रुचि के अनुसार अन्य गतिविधि कराए जाने के निर्देश थे। लेकिन इसी पीरियड को लेकर प्राचार्य सर्वाधिक उलझन में हैं। क्या कराना है,स्पष्ट तौर पर कोई नहीं समझ पा रहा है।


-स्कूलों में नया टाइम टेबल लागू कराया गया है, इसे लेकर कुछ प्राचार्यों ने दिक्कत होने की बात से विभाग को अवगत कराया है। जहां शिक्षकों की कमी है वहां समस्या आ रही है।
-एमपी सिंह, एडीपीओ

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