कोरबा

हाथियों के उत्पात से भयभीत है ग्राम बेला, कोई नेता नहीं आया काम

15.69 फीसदी ग्रामीणों ने नोटा का बटन दबाकर प्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी जाहिर की

कोरबाNov 17, 2018 / 11:38 am

Shiv Singh

15.69 फीसदी ग्रामीणों ने नोटा का बटन दबाकर प्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी जाहिर की

कोरबा. पिछले आठ वर्षों से हाथियों का उत्पात झेल रहे ग्राम बेला के ग्रामीणों को जब 2013 के चुनाव में पहली बार ईवीएम मशीन में नोटा बटन विकल्प मिला तो 15.69 फीसदी ग्रामीणों ने नोटा का बटन दबाकर प्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी जाहिर की थी।
इस नाराजगी का कारण जब खंगालने की कोशिश की गई और जिले से लगभग 30 किलोमीटर दूर वंनाचल क्षेत्र रामपुर विधानसभा के ग्राम पंचायत बेला की पड़ताल की गई तो पता चला कि यहां किसानों के खेत में हमेशा हाथियों के पांव के निशान दिखते हैं। चुनावी दौर में भी इस समस्या पर बात नहीं की जाती है। इसके कारण जनप्रतिनिधियों से भरोसा उठ सा गया है।

राजिम बाई बताती है कि उसने लगभग डेढ़ एकड़ जमीन में धान की फसल लगाई थी। लेकिन रोपाई काम पूरा ही हुआ था, कि हाथियों का झु़ंड आया और फसल को रौंद दिया। इस तरह तीन बार रोपाई करनी पड़ी। तीनों बार हाथियों की वजह से फसल बर्बाद हो गई। अब तक हजारों रुपए खर्च हुए लेकिन सारी मेहनत में पानी फेर दिया। खेतों में आज भी पैरों के निशान हैं। समर ङ्क्षसह राठिया ने बताया कि लगभग 2.5 एकड़ जमीन में धान की फसल लगाया था। जिसमें भांठा सोना, तीन काठी, बड़े सोना, बड़ झुलू की किस्म के धान शामिल है।
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इसमें से करीब दो एकड़ जमीन की फसल को हाथियों के दल ने बर्बाद कर दिया। बची फसल मौसम के मार से सूख गई। पिछले साल हाथियों के पूरी फसल को बर्बाद कर दिया था। चार महीने बाद फसल नुकसान की मुआवजा राशि महज 1200 रुपए दिया। इससे क्या होगा? बृज लाल राठिया ने बताया पहली बार 2010 में हाथियों का दल देखकर सहम गए थे। तब लगातार हाथियों की धमक रहती है। सबसे अधिक खेत को चौपट कर देता है।
शाम चार बजे के बाद घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। हाथियों के आते ही ग्रामीण परिवार की सुरक्षा के लिए पूरा गांव रतजगा करते है।


हाथियों के उत्पात से बचने ग्रामीण ही उठाते हैं खर्च

हाथियों को भगाने के वन विभाग के द्वारा किसी प्रकार की सामाग्री नहीं दिया जाता है। ग्रामीणों को मशाल, मिर्ची पाउडर सहित अन्य उपाए बताए जाते हैं। लेकिन इसका खर्च ग्रामीणों को ही उठाना पड़ता है। विभाग की उदासीनता से ग्रामीणों में नाराजगी देखी जा सकती है।

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