गजब की दरियादिली- आडिट रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि भंडार गृह से एक किलोमीटर की दूरी के लिए ४५०० रुपए का किराया भुगतान कर दिया गया है। वहीं स्थानीय छात्रावास में मच्छरदानी, प्लास्टिक गमला, मसाला डिब्बा, दर्पण व खेल सामग्री का परिवहन बड़े ट्रक से कर दिया गया और १५ हजार रुपए का भुगतान कर दिया गया।
कहता है विभाग- इस मामले में विभाग की ओर से कहा गया कि खरीदी गई सामग्रियों के परिवहन के लिए साल १४-१५ में टेंडर मंगवाई गई थी। इसी के आधार पर १५-१६ में इसका भुगतान कर दिया गया है। पर इसके लिए कोई टेंडर नहीं निकाला गया। इसमें परिवहनकर्ता फर्म ओरिएंट रोड ट्रांसपोर्ट के मुंहमागी दर से भुगतान कर दिया गया।
वायके पंडा पर भंडारी का जिम्मा- वर्ष २०१५-१६ में जितने भी मामले आदिवासी विभाग में अनियमितता के आए हैं उसमें भंडारी के पद पर वायके पंडा कार्यरत थे। जबकि वाहन प्रभारी और भंडार अधिकारी का जिम्मा तात्कालीन सहायक आयुक्त सीएल जायसवाल का था। वहीं खरीदी का दारोमदार भी सीएल जायसवाल के कंधे पर ही था।
कहते हैं अधिकारी- अभी तक पत्रिका में आदिवासी विकास विभाग में बरती गई अनियमितता की जितनी खबरें प्रकाशित की गई है उसमें अधिकारियों की ओर से एक ही बात कही जा रही है कि शासन को इसका जवाब भेज दिया गया है। वहां से जो भी निर्देश आएगा उसका पालन किया जाएगा।
अब मच्छरदानी के लिए कैसे खेला गया खेल- इस मामले में विभाग की ओर से दूसरी अनियमितता आदिवासी बच्चों के मच्छरदानी की खरीदी मेें की गई है। इसमें विभाग ने ४ लाख ७८ हजार ७३७ रुपए की अनियमितता कर दी है। नियम कहता है कि मांग से अधिक की खरीदी नहीं की जा सकती पर विभाग ने इन नियम को भी नहीं माना और मांग से ढाई हजार ज्यादा मच्छरदानी की खरीदी कर डाली। मच्छरदानी की कीमत १८९ रुपए प्रति मच्छरदानी थी। इस प्रकार विभाग ने ४ लाख ७८ हजार ७३७ रुपए का अतिरिक्त वित्तीय भार डाल दिया।