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नेत्रदान में कोटा पिछड़ा, नौ साल में 381 नेत्रदान..आई बैंक खुले तो मिले नेत्र ज्योति

Eye Donation नेत्रदान हाड़ौती में 9 साल में मात्र 440 नेत्रदान

कोटाNov 22, 2019 / 02:30 pm

Suraksha Rajora

नेत्रदान में कोटा पिछड़ा, नौ साल में 381 नेत्रदान..आई बैंक खुले तो मिले नेत्र ज्योति

नेत्रदान में कोटा पिछड़ा, नौ साल में 381 नेत्रदान..आई बैंक खुले तो मिले नेत्र ज्योति

कोटा. शिक्षा व मेडिकल हब एजुकेशन होने के बावजूद सरकारी तंत्र की सुस्ती के कारण कोटा नेत्रदान में पिछड़ा हुआ है। हकीकत ये है कि हाड़ौती में 9 साल में मात्र 440 ही नेत्रदान हुए हैं। इसमें कोटा के 381 नेत्रदान शामिल हैं। जबकि बारां, बूंदी व झालावाड़ में कुल 59 ही नेत्रदान हो पाए। नेत्रदान के मामले में कोटा 7 फ ीसदी का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाया है, जबकि प्रदेश के अन्य शहरों के आंकड़े हाड़ौती से बेहतर हैं।

अब तक नहीं खुला आई बैंक

कोटा मेडिकल कॉलेज से संबद्ध तीनों बड़े अस्पतालों में परम विशेषज्ञ चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध है, लेकिन नेत्रदान की सुविधा नहीं है। हालांकि पांच साल पहले आईबैंक के लिए प्रयास शुरू हुए थे, लेकिन सरकारी सुस्ती के कारण प्रयास सफल नहीं हो सके।

बताते हैं आंकड़े
आई बैंक होने से जयपुर प्रदेश में सबसे अव्वल है। अजमेर दूसरे पायदान पर है। जबकि, उदयपुर तीसरे व कोटा चौथे नम्बर पर है।


संस्था के प्रयासों से बढ़ी जागरूकता
शाइन इंडिया फाउंडेशन संस्था वर्ष 2011 से नेत्रदान के क्षेत्र में कार्य कर रही है। कोटा संभाग से हुए नेत्रदान से अब तक 600 लोगों की आंखों की रोशनी लौट चुकी है। संभाग में 10 हजार लोग नेत्रदान का संकल्प पत्र भर चुके हैं, फि लहाल हाड़ौती में प्रतिमाह 7 नेत्रदान हो रहे हैं। नेत्रदान का मतलब समझने की जरूरतनेत्रदान में केवल आंखों का कार्निया (पुतली) ही निकाली जाती है। एक कार्निया अधिकतम दो लोगों के ट्रांसप्लांट की जा सकती है। 70 प्रतिशत कार्निया ट्रांसप्लांट होता है। जबकि, 30 प्रतिशत कार्निया विभिन्न कारणों से संक्रमित पाया जाता है।
ये कर सकते हैं नेत्रदान
2 से 80 साल तक की उम्र का कोई भी व्यक्ति नेत्रदान की शपथ ले सकता है।
डायबिटीज या हाई बीपी से पीडि़त। चश्मे या कान्टेक्ट लैंस पहनने वाले।
ये नहीं कर सकते नेत्रदान
मृत्यु पूर्व डेंगू, चिकनगुनिया, पीलिया, मलेरिया, टीबी, एचआईवी पॉजीटिव व हेपेटाइटिस बी या सी, ब्लड कैंसर, सैप्टीसिमिया से पीडि़त लोग।

इनका कहना

कोटा में पहले के मुकाबले नेत्रदान को लेकर जागरूकता बढ़ी है। युवा वर्ग आगे आकर संकल्प पत्र भर रहे हैं। शहर में आई बैंक की आवश्यकता है। परिजन चाहते है कि उनके परिजनों की आंखे कोटा में ही ट्रांसप्लांट हो।
डॉ. कुलवंत गौड़, संस्थापक अध्यक्ष, शाइन इंडिया फ ाउंडेशन
साल नेत्रदान
2011 02
2012 14
2013 37
2014 58
2015 63
साल नेत्रदान
2016 79
2017 49
2018 50
2019 74
(स्रोत्र : शाइन इंडिया)

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