तीन बड़े सपने, जो अब तक हैं अधूरे- स्मार्ट सिटी : Smart City
अजमेर, जयपुर, कोटा, उदयपुर शहर केन्द्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना में शामिल है। योजना के तहत करोड़ों की राशि खर्च की जा रही है। बीते छह साल से चल रही इस योजना के तहत किसी भी शहर में स्मार्ट जैसा कुछ विशेष नजर नहीं आ रहा। अजमेर को प्रथम चरण में शामिल करते हुए विकास कार्य शुरू किए गए थे। लेकिन अजमेर की एक भी कॉलोनी या किसी सड़क का विकास नहीं हुआ, जो पैरामीटर के अनुसार स्मार्ट कहा जा सके। कोटा में भी स्मार्ट सिटी योजना के तहत करोड़ों के विकास कार्य करवाए जा रहे हैं, लेकिन शहर की एक भी कॉलोनी व कोई सड़क पूरी तरह से स्मार्ट नहीं बन सकी है।
मेट्रो : Metro जयपुर में मेट्रो-1 फेज के बाद मेट्रो फेज-2 के लिए रूट भी निर्धारित कर लिया गया। डीपीआर भी तैयार है। लेकिन बजट के अभाव में फेज-2 प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ रहा है। चुनावी वादों में कई बार जोधपुर में मेट्रो एवं कोटा में मोनो रेल चलाने को लेकर चर्चा हुई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी।
रिंग रोड : Ring Roads
जयपुर में रिंग रोड बनाने की कवायद 2003 से चल रही है। अभी तक दक्षिणी रिंग रोड का ही काम पूरा हो पाया है। 45 किलोमीटर में बनने वाली उत्तरी रिंग रोड का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। कोटा व जोधपुर में भी रिंग रोड बनाने का सपना अभी तक अधूरा है।
जयपुर: दीया तले अधूरे सपने ट्रांसपोर्ट नगर : ट्रांसपोर्टर्स को बाहर सीकर रोड पर बसाने की कवायद 2007 से चल रही। जेडीए ने प्रथम चरण की नीलामी प्रक्रिया भी पूरी कर ली। लेकिन मामला रिजर्व प्राइस को लेकर अटका हुआ है।
हैरिटेज वॉक : 2015 से इसका काम चल रहा है। नगर निगम ने दो करोड़ रुपए भी खर्च कर दिए हैं। परकोटे की गलियों में परम्परागत व्यवसाय से सैलानियों को रूबरू कराने के लिए इसको मूर्तरूप दिया जाना था। लेकिन अब तक अधूरा पड़ा है।
कोटा: 3 दशक से नए एयरपोर्ट का इंतजार हर चुनाव में कोटा में नया एयरपोर्ट बनाने का मुद्दा गर्माता है। जनता 30 साल से नए एयरपोर्ट निर्माण का सपना देख रही है। केन्द्र व राज्य सरकार के नेता प्रयासरत है, लेकिन नए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के लिए जमीन आवंटन की प्रक्रिया भी अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। राजनीतिक खींचतान के कारण यह बड़ा सपना अभी तक कागजों में ही चल रहा है। कोटा की ट्रिपल आईटी भी जयपुर से चलाई जा रही है। कोटा में भवन नहीं बना है। अभी तक केेवल चारदिवारी ही बनाई जा सकी है। इसी तरह से चम्बल में क्रूज चलाने का सपना भी कागजों में ही अटका दिखाई दे रहा है।
जोधपुर : 10 साल से अधूरा लिफ्ट केनाल थर्ड फेज
पिछली कांग्रेस सरकार के समय से राजीव गांधी लिफ्ट केनाल के तीसरे चरण की प्रक्रिया कागजों में चल रही है। यह करीब 13 सौ करोड़ का प्रोजेक्ट है। जिससे जोधपुर सहित पाली व बाड़मेर जिले के करीब 16 सौ गांव लाभांवित होंगे। इससे 2050 तक इन जिलों की पेयजल समस्या का समाधान होगा।
अलवर : कब आएगा चम्बल का पानी हर चुनाव में अलवर में चम्बल से पानी लाने का मुद्दा गर्माता है। जनता 15 साल से चम्बल का पानी आने का सपना देख रही है। केन्द्र व राज्य सरकार के नेता प्रयास करने का दावा करते हैं। लेकिन डीपीआर बनने से आगे प्रक्रिया नहीं बढ़ पाई। योजना का बार-बार नाम बदला, लेकिन काम किसी में नहीं हुआ। राजनीतिक खींचतान ही बड़ी बाधा है।
सीकर : 12 साल से अधूरा नवलगढ़ पुलिया फोरलेन प्रोजेक्ट
हर चुनाव में सीकर में नवलगढ़ पुलिया को फोरलेन करने का मुद्दा गूंजता है, लेकिन यह सपना अभी तक अधूरा है। भाजपा ने पिछले कार्यकाल में पुलिया को फोरलेन करने की घोषणा की थी। लेकिन आचार संहिता की वजह से डीपीआर भी नहीं बन सकी। फिर चुनाव में दोनों दलों की ओर से इस मुद्दे को उछाला गया। अभी तक सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए कोई घोषणा नहीं की है। पुलिया फोरलेन नहीं होने की वजह से रेलवे फुट ओवरब्रिज भी नहीं बनवा पा रहा है। इस प्रोजेक्ट की वजह से 30 हजार परिवारों को रोजाना जाम की समस्या का सामना करना पड़ता है।
श्रीगंगानगर : ठण्डे बस्ते में मिनी सचिवालय मिनी सचिवालय के निर्माण की रुपरेखा 20 साल पहले बनी थी। 2018 में पुरानी शुगर मिल की जमीन निर्धारित की गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसका शिलान्यास भी किया। सरकार बदली तो मामला ठण्डे बस्ते में डाल दिया।
कागजों में उड़ रही हवाई सेवा
श्रीगंगानगर जिले में लालगढ़ जाटान के पास हवाई पट्टिका बनी हुई हैं। वर्ष 2015 में एक माह तक छह सीटर विमान सेवा शुरू हुई। लेकिन एक हवाई जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सेवा बंद कर दी गई। तब से नया एयरपोर्ट बनाने का सपना केवल कागजों में ही उड़ रहा है।
बांसवाड़ा : खींचतान में अटका वांगड़ का विकास
बांसवाड़ा के रेल का सपना अब तक अधूरा है। सबसे महत्वपूर्ण योजना डूंगरपुर-रतलाम वाया बांसवाड़ा रेल परियोजना ठप हैं। यूपीए सरकार ने परियोजना का शुभारंभ करते हुए इसे वागड़ के विकास का माइल स्टोन बताया था। लेकिन सरकार बदलने के साथ ही यह योजना बंद हो गई। राजनीतिक खींचतान की वजह से वागड़ का विकास अटका हुआ है।
सरकार बदली और योजना ठण्डे बस्ते में बांसवाड़ा में कागदी सौंदर्यकरण योजना वर्षों से ठण्डे बस्ते में हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 2005 में योजना का शुभारंभ किया था। इसके अंतर्गत 7 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी। इससे 17 कार्य हुए। उसके बाद सरकारें बदलती रही, लेकिन इस पर कोई काम नहीं हुआ।