हादसे के बाद बीसीए छात्र विशाल को इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया, लेकिन चिकित्सकों ने उसके बचने की सभी उम्मीदों को सिरे से खारिज कर दिया। बावजूद इसके विशाल के पिता नरेश कपूर ने होश खोने के बजाय गजब का हौसला दिखाया और बेटे के अंगदान करने का फैसला लिया।
आइडियल डॉनर माना लेकिन नतीजा कुछ नहीं परिजनों के साहसिक फैसले को अमल में लाने के लिए निजी अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. मामराज अग्रवाल ने सोमवार रात करीब पौने नौ बजे डिस्ट्रिक्ट ब्रेन डैड कमेटी के चेयरमैन डॉ. विजय सरदाना, कॉर्डिनेटर डॉ. नीलेश जैन और मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. गिरीश वर्मा को इसकी सूचना दी।
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ऑर्गन रिट्राइवल की संभावनाएं जांचने के लिए डॉ. जैन निजी अस्पताल पहुंच गए। उन्होंने विशाल को आइडियल डॉनर माना। स्टेट ब्रेन डैड कमेटी और एसएमएस ब्रेन डैड कमेटी की कॉर्डिनेटर को भी वस्तु स्थिति से अवगत कराने के बाद कोटा में अंगदान की सुविधा न होने की जानकारी परिजनों को भी दे दी, लेकिन ऑर्गन ट्रांसप्लांट कॉर्डिनेटर डॉ. कुलवंत गौड़ ने विशाल के परिजनों को उसे जयपुर ले जाने के बजाय कोटा में ही सारी सुविधाएं कराने का आश्वासन दिया।
पहली कोशिश हुई विफल किसी भी व्यक्ति को ब्रेन डैड घोषित करने के लिए एपनिया टेस्ट किया जाता है। अंगदान के सारे इंतजाम कोटा में ही होने का आश्वासन मिलने के बाद डिस्ट्रिक्ट ब्रेन डैड कमेटी ने विशाल को मानसिक रूप से मृत घोषित करने के लिए सोमवार रात करीब 12 बजे से इस टेस्ट की शुरुआत की, लेकिन इससे पहले होने वाले बेसलाइन टेस्ट फेल होने के कारण विशाल की एपनिया जांच नहीं हो सकी।
बेसलाइन टेस्ट फेल होने के बाद दूसरी बार कोशिश करने के लिए ब्रेन डैड कमेटी के सभी छह सदस्य पूरी रात निजी अस्पताल में ही डटे रहे। अलसुबह करीब चार बजकर पांच मिनट पर जब सोडियम और ग्लूकोज तय मात्रा से मिला तो एपनिया टेस्ट किया गया। जो अंगदान के मानकों पर खरा नहीं उतरा, लेकिन पिता नरेश कपूर ने हिम्मत नहीं हारी और जिला कलक्टर मुक्तानंद अग्रवाल से दोबारा एपनिया टेस्ट कराने की गुहार लगाई।
उनके दखल के बाद ब्रेन डैड कमेटी मंगलवार सुबह करीब 11 बजे दोबारा निजी अस्पताल पहुंची और जांचों की शुरुआत की। विशाल की बॉडी का वेंटीनेटर पर और उसके हटाकर एपनिया टेस्ट किया गया, जो मानकों पर सही पाया गया। हालांकि विशाल को ब्रेन डैड घोषित करने के लिए पहला एपनिया टेस्ट सफल होने के छह घंटे बाद नियमानुसार दूसरा टेस्ट किया जाएगा। जिसे मंगलवार रात 10 बजे शुरू किया गया और उसकी रिपोर्ट मिलने के बाद विशाल की ‘मृत्युÓ पर फैसला हो सकेगा।
मुख्यालय ने तोड़ी उम्मीद कोटा में पहली बार अंगदान होने की उम्मीद को स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मुख्यालय ने तोड़ दिया। प्राचार्य डॉ. गिरीश वर्मा ने मुख्यालय से एक दिन के लिए मेडिकल कॉलेज या किसी भी निजी अस्पताल में अस्थाई ऑर्गन रिट्राइवल सेंटर बनाने की इजाजत मांगी। जिसे डायरेक्टर हैल्थ डॉ. वीके माथुर ने खारिज कर दिया। उन्होंने प्राचार्य को मेल से सूचना दी कि कोटा में कहीं भी मूलभूत सुविधाएं न होने के कारण कोटा में विशाल का अंगदान नहीं किया जा सकता। वहीं जयपुर के विशेषज्ञों को भी कोटा भेजने की स्थिति में नहीं है।
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आखिरी रास्ता दूसरे एपनिया टेस्ट के नतीजों के आधार पर यदि डिस्ट्रिक्ट कमेटी विशाल को ब्रेन डैड घोषित भी कर देगी तो भी अंगदान के लिए उसे जयपुर ले जाने के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। जयपुर ले जाने के बाद वहां फिर से एपनिया टेस्ट किया जाएगा, जिसके परिणाम सकारात्मक आने के बाद ही अंगदान की प्रक्रिया पूरी हो सकेगी।