ईसर-गौर यानि शिव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है। इसे शिव और गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। लेकिन इस उत्सव को इस बार कोरोना ने फीका कर दिया लेकिन परम्परागत पर्व का उत्साह चरम पर रहा। महिलाओं ने घर पर ही मिट्टी की गणगौर बनाकर पूजा अर्चना की। लोक गीतों के जरिए अमर सुहाग की प्रार्थना करते हुए देश में कोरोना के संकट को दूर करने की कामना की।
भावों की मिठास और अपनों की मनुहार लोकगीत पूजा के समय निभाई जाने वाली हर रीत को समेटे हुए महिलाओं ने कोरोना के खौफ के साए में पूरी एहतियात बरतते हुए पूजा की। मुंह पर मास्क लगाकर पूजा की और सोशल डिस्टेंंसिंग पूरा ध्यान रखा गया। कुंवारी कन्याओं ने भी मनचाहा वर के लिए पूजा अर्चना की। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर तुलसी के गमले में विसर्जित किया ।
श्हर में लॉक डाउन के चलते मंदिरो पर भी कोरोना का पहरा रहा। पिछले साल जहां गणगौर पर्व की धूम देखने को मिलती थी वहां सन्नाटा ही पसरा रहा। दादाबाड़ी गौतम निवास में सन् 1970 के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला। बुजूर्ग कांति शर्मा ने बताया कि पचास सालो से ईसर गौर को पूजा जाता रहा।