सिंह ने पत्र में लिखा कि नगर निकायों के अध्यक्ष जनता के द्वारा ही चुने जाने चाहिए। किसी भी तरह से थोपा गया अध्यक्ष प्रजातंत्र की मूल भावना के खिलाफ होगा। इससे जनता का अहित होगा, इसलिए सरकार को इस फैसले पर पुन: विचार करना चाहिए।
घोटाले के आरोपों पर भड़के महापौर, बोले, ‘राजनीति चमकाने के लिए मुझ पर लांछन लगा रहे नेता प्रतिपक्ष सुवालका’ सिंह के पत्र लिखे जाने के बाद पत्रिका ने उनसे इस मुद्दे पर चर्चा की। इसमें उन्होंने कहा, यह केवल उनका सुझाव है, सरकार के किसी निर्णय को गलत बताना उनकी मंशा नहीं है। वे चौथी बार विधायक हैं, अपने अनुभव के आधार पर यह सुझाव दिया है। बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।
पत्रिका : आपने पत्र लिखा है, क्या यह सरकार का विरोध नहीं है? सिंह : पत्र लिखकर मैंने अपना सुझाव दिया है, मैं सरकार के फैसले के साथ हूं। इससे पहले मुझे चुनाव की इस तरह की प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी। यह पता था कि महापौर, सभापति और अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता करती है या फिर चुने हुए पार्षदों में से किसी एक का चुनाव पार्षद करते हैं। सरकार के विरोध में जाने का तो सवाल नहीें नहीं उठता है।
पत्रिका : सरकार के इस फैसले को लेकर आप क्या सोचते हैं? सिंह : मंत्रिमंडल ने कोई फैसला किया है तो बहुत चिंतन के बाद लिया होगा। मैंने सुझाव दे दिया है, मानना या न मानना सरकार के ऊपर निर्भर है। सरकार का जो फैसला होगा, वह स्वीकार्य होगा।