हर साल होने वाली तकनीकी कमेटी की बैठक में इस एजेण्डे पर चर्चा होती है, लेकिन फिर ठण्ड़े बस्ते में डाल दिया जाता है। वहीं रबी सीजन में चम्बल जल बंटवारे ( Chambal water sharing ) को लेकर मध्यप्रदेश और राजस्थान में विवाद होता है। विवाद के कारण तीन साल पहले मध्यप्रदेश ने गांधी सागर से राजस्थान के लिए पानी रोक दिया था। हालांकि इस साल पर्याप्त पानी होने के कारण पानी को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ है।
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चम्बल व उसकी सहायक नदियों का मास्टर प्लान केन्द्रीय जल आयोग की गाइड लाइन के अनुसार तैयार किया जाना था। दोनों राज्यों ने स्वतंत्र एजेन्सी के जरिये मास्टर प्लान तैयार करवाने पर सहमति दी थी, इसके लिए भारत सरकार के उपक्रम वेपकोर्स को मास्टर प्लान तैयार करने का जिम्मा सौंपा था, लेकिन बाद में मध्यप्रदेश ने आपत्ति जता दी। इस कारण मास्टर प्लान अटक गया है। चम्बल जल बंटवारा समझौते के तहत दोनों राज्यों के बीच पानी समेत अन्य विवादों का समाधान करने के लिए मुख्यमंत्री स्तरीय कमेटी बनी हुई है। इस कमेटी की बैठक वर्ष 2005 के बाद नहीं हुई है। इस कारण यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया है।
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यूं किया जाना था पानी का आंकलन
चम्बल बेसिन में चम्बल के उद्गम स्थल महू (मध्यप्रदेश) से लेकर यमुना नदी में विलय होने तक के पानी का आकलन किया जाना था। इसमें चम्बल व इसकी समस्त सहयोगी नदियों के पानी की आवक के आंकड़े जुटाए जाने थे। इसके साथ अगले 2025 और 2050 की जरूरतों के मुताबिक, पेयजल, पशु पेयजल, सिंचाई, औद्योगिक उत्पादन के लिए कितने-कितने पानी की जरूरत होगी, इसके भी संभावित आंकड़े जुटाने थे। BIG News: महिला कांस्टेबल को बहादुरी के लिए डीजी ने दिया 5 हजार का पुरस्कार
यह होता है विवाद
कोटा बैराज से दाईं मुख्य नहर से बारां जिले की सीमा पर पार्वती एक्वाडक्ट से मध्यप्रदेश को पानी दिया जाता है। इस नहर की कुल क्षमता 6656 क्यूसेक है। जल समझौते के तहत मध्यप्रदेश को 3300 क्यूसेक पानी दिया जाना होता है। राजस्थान जर्जर नहरी तंत्र के कारण 700 क्यूसेक पानी का लोसेज बताता है। विवाद होने पर दोनों राज्यों के अधिकारी नहरी पानी का आंकलन करते हैं।