कोरोना में पीछे हट रहे देहदानी, दो साल में एक भी देह नहीं मिली
. झालावाड़ मेडिकल कॉलेज में उधारी की देह से चला रहे काम. जेएमसी का दूसरे मेडिकल कॉलेज पर निर्भर रहने की मजबूरी
कोरोना में पीछे हट रहे देहदानी, दो साल में एक भी देह नहीं मिली
झालावाड़. देहदान के प्रति अब भी लोगों की रूचि नहीं है, जबकि यह अनमोल दायित्व है। सरकार अपने सीमित दायरे में अंगदान और देहदान की मुहिम को बढ़ावा देने में लगी है, लेकिन ऐसी संस्थाओं की कमी अखरती है जो ऐसे कामों के के लिए लोगों को प्रेरित कर सके। कोरोनाकाल में देहदानी पीछे हट गए हैं। इस कारण पिछले दो साल में एक भी देह दान नहीं हुआ है। बीते एक दशक में झालावाड़ मेडिकल कॉलेज में महज दो ही देहदान किया गया है। इसके चलते जेएमसी को अन्य मेडिकल कॉलेज के भरोसे रहना पड़ रहा है। झालावाड़ मेडिकल कॉलेज को पहली देहदान 2010 में की गई थी। जिले के बकानी निवासी 90 वर्षीय रामचन्द्र जोशी का निधन हो गया था। जोशी ने अपनी देहदान की इच्छा 30 वर्ष पहले ही परिजनों से जताई थी। उनके पुत्र अनंग कुमार जोशी ने बताया कि पिताजी की इच्छा के अनुसार हमने 25 मई 2010 में उनकी देह झालावाड़ मेडिकल कॉलेज के सुपुर्द की थी। इसके बाद 7 साल तक कोई देहदान नहीं हुआ। 2018 में गरोठ निवासी 103 वर्षीय स्वतंत्रता सैनानी गुलाबचन्द्र घटिया की इच्छा परिजनों ने झालावाड़ मेडिकल कॉलेज को उनकी देहदान की। उनके पौत्र आशीष ने बताया कि उनके दादाजी ने मरने से पूर्व कहा था कि मेरी मौत के बाद मेरा शरीर राष्ट्र को समर्पित करें। इसके बाद झालावाड़ मेडिकल कॉलेज को 28 दिसम्बर 2018 को देहदान किया। 12 वर्ष में मेडिकल कॉलेज को 2 ही देह मिली है। वहीं अब तक 34 लोगों ने देहदान का संकल्प-पत्र भरा हुआ है। विशेषज्ञ चिकित्सकों के मुताबिक एक देह से एक साल तक ही मेडिकल छात्र प्रेक्टिकल कर सकते हैं, इसके बाद शव को डिस्पोजल करना होता है। एमएनसी के नए नियम के अनुसार मेडिकल कॉलेज झालावाड़ में एबीबीएस की 200 सीटें है। ऐसे में छात्रों को प्रेक्टिकल के लिए पर्याप्त देह की जरूरत होगी। फिलहाल मेडिकल छात्रों के अध्ययन के लिए देह की कमी बरकरार है। शहर की संस्थाएं भी मानव कल्याण के इस कार्य में आगे नहीं आ रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार चिकित्सक बनने वाले प्रत्येक छात्र को मानव शरीर की आंतरिक संरचाना का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। मेडिकल ऑपरेशन में जब तक भी कोई नई तकनीक आती है, उसे सीखने और प्रेक्टिल कर देखने के लिए मानव शरीर पर प्रयोग होता है। वर्तमान में ऑनलाइन कक्षाएं चल रही है,लेकिन जब कॉलेज में छात्र आने लगेंगे तब उन्हें देह पर प्रेक्टिल कराए जाएंगे। सूत्रों ने बताया कि झालावाड़ मेडिकल कॉलेज में जयपुर, उदयपुर, जोधपुर आदि कॉलेजों से करीब 50 बॉडी ले चुके हैं। अब सभी ने देने मना कर दिया है। ऐसे में एमबीबीएस के छात्रों को केडेवर पर प्रेक्टिल करने को नहीं मिल पा रहे हैं। हालांकि काफी कोशिश के बाद जयपुर मेडिकल कॉलेज से तीन देह देने का अश्वासन दिया गया है। ऐसे में उन्हे जल्द मंगवाया जाएगा। जबकि एनाटॉमी विभाग में बिना देह के प्रेक्टिल होना मुश्किल है। कोरोना संक्रमण काल में भारतीय चिकित्सा परिषद एवं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मेडिकल कॉलेज अस्पताल में देहदान करने की शर्त में बदलाव कर दिया। अब उन्हीं लोगों की देह मेडिकल कॉलेज के छात्रों के अध्ययन के लिए दान में ली जाएगी, जिनकी मौत से 15 दिन पूर्व तक कोरोना संक्रमण के कोई लक्षण न आए हो। मौत से पांच दिन पहले तक कोरोना की रिपोर्ट नेगेटिव रही हो। एनाटॉमी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ.मनोज शर्मा ने बताया कि विभाग की ओर से झालावाड़ मेडिकल कॉलेज की साइड से भी ऑनलाइन आवेदन डाउनलोड कर, या ऑफलाइन भी कॉलेज में आकर भर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति मरने से पूर्व अपनी इच्छा के अनुसार देहदान सकता है। अगर किसी ने पूर्व में देहदान की घोषणा नहीं कि है तो वह नेचुरल मौत के बाद भी परिजनों की सहमति से देहदान किया जा सकता है।
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