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ऐसा चढ़ा रंग खुद हो गए कृष्ण दास और नगर बना नंदग्राम

सरकारी कागजों पर लगाई जाने लगी जय गोपाल की सील  

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ऐसा चढ़ा रंग खुद हो गए कृष्ण दास और नगर बना नंदग्राम

कोटा. कृष्ण भक्ति का ऐसा उदाहरण भी देखने को दुनिया में नहीं मिला होगा, जो उदाहरण चर्मण्यवती की नगरी के शासक ने पेश किया। यकीन कीजिए कोटा के शासक भगवान कृष्ण की भक्ति में इस तरह से रम गए थे कि उन्होंने अपना नाम ही कृष्ण दास कर दिया, फिर भगवान के सेवक के रूप में ही शासन करने लगे।
इतिहासविद फिरोज अहमद बताते हैं कि कोटा के शासक महाराव भीम सिंह प्रथम (1707 से 1720) कोटा के पहले राजा थे जिन्हें महाराव की पदवी मिली थी। भले ही उन्हें महाराव की पदवी मिल गई, लेकिन वे तो कृष्ण रंग में रंगे हुए थे।

यमुना में किया स्नान तो हो गया वैराग्य
फिरोज बताते हैं कि महाराव भीमसिंह प्रथम कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उन्होंने गौसाईंजी से वल्लभकुल की परम्पराओं के अनुसार वल्लभमत ग्रहण किया था। वह एक बार दिल्ली से लौट रहे थे, इस दौरान वे मथुरा में ठहर गए। जहां उन्होंने यमुना में स्नान किया। यमुना में स्नान करते उनमें वैराग्य भाव जाग उठा। फिर क्या था, इसी भाव में उन्होंने कोटा का शासन भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया और अपना नाम कृष्ण दास कर लिया। वे कुछ दिन मथुरा में ही रहे और फिर कोटा आए तो कोटा नगर का नाम नंदग्राम कर दिया। वे भगवान के सेवक के रूप में शासन करने लगे। इसके बाद सरकारी कार्यालयों में जयगोपाल की सील लगने लगी। फिरोज अहमद के अनुसार शेरगढ़ तक क्षेत्र कोटा में आता था, इसका नाम उन्होंने बरसाना कर दिया था।


भक्ति का रंग ऐसा था
इतिहासविद् फिरोज अहमद के अनुसार महाराव भीम सिंह प्रथम युद्ध करते तो हाथी के ओहदे में अपने सामने बृजनाथ जी का विग्रह रखते थे।


रहता था उल्लास
सिर्फ महाराव भीमसिंह प्रथम 'कृष्णदासÓ ही नहीं अन्य शासकों पर भी कृष्ण का रंग था। महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के काल में (1889 से 1940) में कृष्ण जन्माष्टमी की शोभा देखते ही बनती थी। नंदग्राम में पंचमी से बारस तक कृष्ण जन्माष्टमी की धूम रहती थी। गढ़ में सजावट की जाती व दरीखानों के आयोजन होते थे। महाराव कृष्ण भक्त थे। वे मंदिरों के मुखियाओं को बुलाते और उनका सम्मान करते थे।